Book Title: Bhupendranath Jain Abhinandan Granth
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 9
________________ श्री भूपेन्द्रनाथ जैन : एक रचनात्मक व्यक्तित्व व्यक्ति विश्व के रंगमंच पर अवतरित होता है और जीवन के कुछ खट्टे-मीठे अनुभवों को लेकर एक दिन इस संसार से विदा हो जाता है । जन्म और मृत्यु ऐसे दो छोर हैं जो प्रत्यके व्यक्ति के जीवन में घटित होते हैं । जन्म के पूर्व और मृत्यु के पश्चात क्या होगा? इसे चाहे हम न जानें किन्तु संसार में अवतरित होकर व्यक्ति ने अपना जीवन कैसे जिया, यह अनेक लोग जानते हैं। जन्म और मृत्यु ये दोनों ही हमारे अधिकार क्षेत्र के बाहर हैं । इसके संबंध में एक उर्दू शायर ने कहा है - "लायी हयात आ गए कज़ा जे चली चले चले । न अपनी खुशी आये न अपनी खुशी गए। किन्तु इन दोनों छोरों के मध्य जो जीवन है वह हमारा अपना है। व्यक्ति की जीवन शैली और उसके कार्यादर्श ही ऐसे तत्त्व हैं जो व्यक्ति की विशेषता का निर्धारण करते हैं । व्यक्ति का व्यक्तित्व कैसा रहा यह उसकी जीवन शैली और कार्यादर्श ही बताते हैं । श्री भूपेन्द्रनाथ जैन के व्यक्तित्व का मूल्यांकन भी उनकी जीवन शैली और जीवन आदर्श से ही किया जा सकता है। उन्होंने अपने जीवन में जिस मूक भाव से, यश लिप्सा से निर्लिप्त होकर पार्श्वनाथ विद्यापीठ के विकास हेतु जैन विद्या के क्षेत्र में जो सेवा दी वह उनके व्यक्तित्व का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष है । वस्तुत: अपने लिए तो सभी कोई जीते हैं। घर-परिवार के लिए तथा भोग-उपभोग के साधनों की उपलब्धि के लिए पुरुषार्थ तो सभी कोई करते हैं । भोग-उपभोग के पीछे भागते हुए विपुल धन का संचय कर लेना और उसे या तो अपने भोग-उपभोग में खर्च कर लेना या परिवार के लिए छोड़ जाना, इस सब में व्यक्ति के व्यक्तित्त्व की महत्ता नहीं है । महत्ता इस बात में है कि उसने दूसरों के लिए क्या किया ? देश और समाज को उससे क्या लाभ मिला ? वस्तुत: भूपेन्द्रनाथ जी जैन एक ऐसे मूक सेवक रहे हैं जिन्होंने अपने यश की अपेक्षा किये बिना समाज की सेवा की है। श्री भूपेन्द्र नाथ जी का जन्म अमृतसर के प्रसिद्ध एवं सम्मानित ओसवाल परिवार में लाला जगन्नाथ जी के पौत्र और लाला हरजसराय जी पुत्र के रूप में दिनांक ८ नवम्बर, १९१८ को हुआ। लाला जगन्नाथ जी का परिवार अपनी समृद्धता और समाजसेवा के लिए अमृतसर में प्रसिद्ध था। लाला जगन्नाथ जी के तीन पुत्र थे- लाला रतनचंद जी, लाला हरजसराय जी और लाला हंसराज जी। लाला रतनचंद जी के पुत्रों में बम्बई के भूतपूर्व शेरीफ श्री शादीलाल जी जैन ज्येष्ठ पुत्र थे। उनके अन्य पुत्रों में लाला सुमतिप्रकाश जी, जगतभूषण जी आदि हैं । लाला हरजसराय जी का विवाह स्यालकोट के प्रसिद्ध हकीम लाला बेलीराम जी की सुपुत्री श्रीमती लाभ देवी से हुआ था । लाला हरजसराय जी एवं श्रीमती लाभदेवी के इस युगल से कुल छह पुत्र और दो पुत्रियों ने जन्म लिया । श्री अमरचंद जी, श्री भूपेन्द्रनाथ जी, श्री सुबुद्धिनाथ जी, श्री विद्याभूषण जी, श्री रमेशचंन्द्र जी और श्री कैलाश चंद्र जी - ये छह पुत्र और श्रीमती सुनन्दा जैन तथा श्रीमती करुणा जैन -ये दो पुत्रियाँ हुईं। लाला हरजसराय जी के प्रथम पुत्र श्री अमरचंद जी एवं श्री सुबुद्धिनाथ जी क्रमश: १९८५ एवं १९५८ में स्वर्गवासी हो गए । शेष चारों पुत्र और दोनों पुत्रियां आज भी अपने पिता के द्वारा रोपित पार्श्वनाथ विद्यापीठ के विकास में रुचिपूर्वक भाग ले रहे हैं । मात्र यही नहीं लाला रतनचंद जी के पौत्र और श्री शादीलाल जी के पुत्र श्री नृपराज जी और उनका परिवार भी विद्यापीठ के विकास में रुचिपूर्वक भाग ले रहे हैं। इसी प्रकार लाला हरजसराय के पौत्र और अमरचंद जी के पुत्र श्री इन्द्रभूति बरड़ ने भी संस्था के विकास में रुचि लेना प्रारम्भ किया है। वस्तुत: पार्श्वनाथ विद्यापीठ के जन्म से लेकर आज तक यह परिवार इस संस्था के विकास हेतु अपनी सेवाएँ समर्पित करता रहा जिस प्रकार पूर्व में लाला जगन्नाथ जी के परिवार ने लाला हरजसराय जी के पारिवारिक व्यवसाय की चिन्ता से मुक्त होकर इस संस्था के लिए समर्पित होकर कार्य करने की प्रेरणा दी थी उसी प्रकार लाला हरजस राय जी को परिवार ने भी भूपेन्द्र नाथ जी को पारिवारिक दायित्वों से मुक्त करके इस विद्या संस्था की सेवा में समर्पित कर दिया। ये पारिवारिक संस्कार ही ये जिन्होंने श्री भूपेन्द्र नाथ जी जैन को इस संस्था के प्रति समर्पित बनाया । वस्तुत: व्यक्ति की जीवन शैली और आदर्शों के विकास में परिवार का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है । माता-पिता और परिजन Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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