Book Title: Bhav Sangrah
Author(s): Devsen Acharya, Lalaram Shastri
Publisher: Hiralal Maneklal Gandhi Solapur

View full book text
Previous | Next

Page 3
________________ आचार्य श्री देवसेन का परिचय यद्यपि इनके किसी ग्रन्थ में इस विषय का उल्लेख नहीं है कि किस संघ के आचार्य थे परन्तु दशन सार के पढ़ने से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि वे मल संघ के आचार्य थे । दर्शनसार मे उन्होंने काष्ठ सन्ध, द्राविड सन्ध, माथुर सन्घ और यापनीय सघ आदि सभी दिगम्बर सन्धों की उत्पत्ति वतलाई है और उन्हे मिथ्यात्वी कहा है । परन्तू मल सन्ध के विषय मे कुछ नहीं कहा है अर्थात् उनके विश्वास के अनुसार यही ( मूल पन्ध ) मूल से चला आया है और यही वास्तविक सन्ध श्री देवसेन का आम्नाय श्री देवसेन गणि ने दर्शचसार की ४३ वी गाथा में लिखा है किजाई पउमणविणाहो सीमंधरसामि देष्य गाणेण । ण वियोहइ तो समणा कहं सुमागं पयाणंति ।। अर्थात् यदि आचार्य पद्यनंदि (कुंद कुंद स्वामी ) सिमंधर स्वामी द्वारा प्राप्त दिध्यज्ञान के द्वारा बोध नहीं देते तो मुनिजन सच्चे मार्ग को कैसे जानते । इस कथन से यह निश्चय हो जाता है कि आचार्य देवसेन गणि श्री कुंद कुंदाचार्य की आम्नाय मे थे । भाब मन्त्रह मे ( प्राकृत मे ) जगह जगह दर्शन सार की अनेक गाथाएं उपत की गई है। आर उनका उपयोग उन्होंने स्वनिर्मित गाथाओं की भांलि किया है। इस से इस विषय में कोई सन्देह नही रहता कि दर्शनसार और भाबसन्ग्रह दोनों के कर्ता एक ही देवसन है। इन अतिरिक्त आराधनासार और तत्वसार नाम के ग्रन्थ भी इन्हीं देवसेन के बनाये हुए है। प. शिवलालजी ने इनके धर्म सन्ग्रह ' नामक एक और ग्रन्थ का उल्लेख किया है परन्तु वह अभी तक हमारे देखने में नहीं आया मगचत्र के कर्ता भी श्री प्राचार्य देवसेन है परन्तु इस सम्बन्ध में

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 ... 531