Book Title: Bharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Aavdan
Author(s): Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 40
________________ ३३ और प्रभावक विचारों से जैनाचार्यों ने एक ओर जहाँ दूसरों के दुःखों को दूर करने का प्रयास किया वही मानव-मानव के बीच पनप रहे अन्तर्द्वन्द्वों को समाप्त करने का भी मार्ग प्रशस्त किया। समन्तभद्र ने उसी को सर्वोदयवाद कहा था। हरिभद्र और हेमचन्द्र ने इसी के स्वर को नया आयाम दिया था। प्रारम्भ से लेकर अभी तक सभी जैनाचार्य अपने उपदेश और साहित्य सृजन के माध्यम से एकात्मकता की प्रतिष्ठा करने में ही लगे रहे हैं। इतिहास में ऐसा कोई उदाहरण नहीं जिसमें जैन धर्मावलम्बियों ने किसी पर आक्रमण किया हो और एकात्मकता को धक्का लगाया हो। भारतीय संस्कृति में उसका यह अनन्य योगदान है जिसे किसी भी कीमत पर झुठलाया नहीं जा सकता। मुसलिम आक्रमणकारियों द्वारा मन्दिरों और शास्त्र भण्डारों के नष्ट किये जाने के बावजूद जैनधर्मावलम्बियों ने अपनी अहिंसा और एकात्मकता के स्वर में आँच नहीं आने दी। यह उनकी अहिंसक धार्मिक जीवन पद्धति और दार्शनिक, आध्यात्मिक तथा सामाजिक चिन्तन का परिणाम था कि सदैव उसने जोड़ने का काम किया, तोड़ने का नहीं। (१६) लोक बोली प्राकृत का प्रयोग व्यक्ति और समाज को जोड़ने के लिए मातृभाषा का प्रयोग एक आवश्यक तत्त्व है। सभी को जोड़ने का और अपनी विचारधारा को सशक्त ढंग से प्रस्तुत करने का भी वह एक महनीय साधन है। तीर्थंकर महावीर ने उस समय बोली जाने वाली प्राकृत को अपनी अभिव्यक्ति का साधन बनाया और अपने दर्शन को जनता के समक्ष रखा। जनता ने भी उसका भरपूर स्वागत किया। अभिव्यक्ति के क्षेत्र में लोक बोली का प्रयोग निश्चित ही एक क्रान्तिकारी कदम था। उत्तरकालीन जैनाचार्यों ने भी अभिव्यक्ति के लिए इसी साधन को अपनाया। यही कारण है कि जैन साहित्य प्राकृत में बहुत मिलता है। ___जैन संस्कृति की ये मूल अवधारणाएँ मानवतावाद के विकास में सदैव कार्यकारी रही है। उन्होंने आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक क्षेत्र से भ्रष्टाचार दूर कर सर्वोदयवाद और अहिंसावादी विचारधारा को प्रचारित करने का अथक् प्रयत्न किया, धनोपार्जन के सिद्धान्तों को न्यायवत्ता की ओर मोड़ा, मूक प्राणियों की वेदना को अहिंसा की चेतनादायी संजीविनी से दूर किया, शाकाहार पर पूरा बल देकर पर्यावरण की रक्षा की और सामाजिक विषमता की सर्वभक्षी अग्नि को समता के शीतल जल और मन्द वयार से शान्त किया। जीवन के हर अंग में अहिंसा और मद्य, माँस, द्यूत आदि जीवनघाती व्यसनों से मुक्ति के महत्त्व को प्रदर्शित कर मानवता के संरक्षण में जैन संस्कृति ने सर्वाधिक योगदान दिया Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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