Book Title: Bharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Aavdan
Author(s): Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 91
________________ ८४ हैं। अहिंसा के माहात्म्य को यहाँ अभिव्यक्ति किया गया है। लगभग बीस ग्रन्थ 'श्रीपालचरित' के मिलते हैं जिनमें सिद्धचक्र के माहात्म्य को प्रस्तुत किया गया है। भविष्यदत्तकथा, मणिपतिचरित, सुकोशलचरित, सुकुमालचरित, जिनदत्तचरित, गुणवर्मचरित, चम्पक श्रेष्ठीकथा, धर्मदत्तकथा, रत्नपालकथा, नागदत्तकथा, आदि सैकड़ों ग्रन्थ मिलते हैं जिनमें इस प्रकार की कथाओं के माध्यम से धर्म और संस्कृति को उद्घाटित किया गया है। कुछ ऐसे भी कथा ग्रन्थ हैं जिनमें महिला वर्ग को पात्र बनाया गया है। रत्नप्रभाचार्य (१३वीं शती) की कुवलयमालाकथा, जिनरत्नसूरि (वि० सं० १३४० की निर्वाणलीलावतीकथा, माणिक्यसूरि (१५वीं शती) की महाबलमलयसुन्दरी आदि शताधिक कथाग्रन्थ प्रसिद्ध हुए हैं। इसी प्रकार तिथि, पर्व, पूजा, स्तोत्र, व्रत आदि से सम्बद्ध सैकड़ों कथाये हैं जिन्हें जैनाचार्यों ने संस्कृत भाषा में निबद्ध किया है। विक्रमादित्य की कथा भी बहुत लोकप्रिय हुई है। कुछ धूर्ताख्यान और नीतिकथात्मक साहित्य भी मिलता है। जिनसे जीवन की सफलता के सूत्र सम्बलित किये जाते हैं। ललित वाङ्मय जैनाचार्यों ने संस्कृत के ललित वाङ्मय को भी बहुत समृद्ध किया है। उन्होंने महाकाव्य, खण्डकाव्य, नीतिकाव्य, सन्देशकाव्य, नाटक आदि अनेक विधाओं पर अपनी लेखनी चलायी है। महासेनसूरि का प्रद्युम्नचरित (१०वीं शती), वाग्भट का नेमिनिर्वाण काव्य (१०वीं शती), वीरनन्दि (११वीं शती) का चन्द्रप्रभचरित, असग का वर्धमानचरित (१०वीं शती), हरिचन्द का धर्मशर्माभ्युदय (१३वीं शती), जिनपालगणि (१३वीं शती) का सनत्कुमारचरित, अभयदेवसूरि (वि०सं० १२७८) का जयन्तविजय, वस्तुपाल (१३वीं शती) का नरनारायणनन्द, अर्हत्दास (१३वीं शती) के मुनिसुव्रत काव्य, पुरुदेवचम्पू और भव्यकण्ठाभरण, जिनप्रभसूरि का श्रेणिकचरित (वि०सं० १३५६), मुनिभद्रसूरि का शान्तिनाथचरित (वि०सं० १४१०), भूरामल का जयोदय महाकाव्य (वि०सं० १९९४) आदि महाकाव्य परम्परागत महाकाव्यों के लक्षणों से अलंकृत हैं। उनकी भाषा भी प्राञ्जल और ओजमयी है। धनञ्जय (८वीं शती) का द्विसन्धान महाकाव्य और मेघविजयगणि का सप्तसन्धान महाकाव्य (वि०सं० १७६०), जयशेखरसूरि का जैनकुमार सम्भव (वि०सं० १४८३), धनपाल (१वीं शती) की तिलकमञ्जरी, वादीभसिंह (१०१५-११५० ई०) की गद्य चिन्तामणि, सोमदेव का यशस्तिलकचम्पू (वि० सं० १०१६), हरिचन्द का जीवन्धरचम्प आदि काव्य भी संस्कत साहित्य के आभषण Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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