Book Title: Bharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Aavdan
Author(s): Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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(वि०सं० १२७६), विनयचन्द्र सूरि का मल्लिनाथचरित, मुनिसुव्रतनाथचरित, कीर्तिराज उपाध्याय का नेमिनाथ महाकाव्य (१४वीं शती), गुणविजयगणि का नेमिनाथचरित (वि० सं० १६६८), वादिराजसूरि (शक सं० ९४७), माणिक्यचन्द्रसूरि, विनयचन्द्रसूरि, भावदेवसूरि आदि के पार्श्वनाथचरित, असग का महावीरचरित (वि०सं० १०४५), सकलकीर्ति का वर्धमानचरित आदि ग्रन्थ भी उत्तमकोटि के हैं।
चक्रवर्तियों पर भी अनेक संस्कृत काव्य लिखे गये हैं। चौबीस कामदेवों में नल भी एक लोकप्रिय विषय रहा है जिस पर लगभग पन्द्रह काव्य लिखे गये हैं। उनके अतिरिक्त हनुमान, वसुदेव, बलिराज, प्रद्युम्न नागकुमार, २ जीवन्धर
और जम्बूस्वामी पर भी शताधिक संस्कृत काव्यों का प्रणयन हुआ है। जीवन्धर का आधार लेकर क्षत्रचूड़ामणि, गद्यचिन्तामणि (वादीभ सिंह), जीवन्धरचम्प (हरिचन्द्र) तथा जम्बूस्वामीचरित का आधार लेकर पच्चीसों ग्रन्थ लिखे गये हैं। प्रत्येकबुद्धों (करकुण्ड, नग्गई, नमि और दुर्मुख) पर श्वेताम्बर परम्परा में अधिक ग्रन्थ लिखे गये हैं३ जबकि दिगम्बर परम्परा में केवल करकण्डु को रचना का विषय बनाया गया है। __इनके अतिरिक्त काव्य में कुछ ऐसे भी महापुरुषों के जीवनचरितों को अपने लेखक का विषय बनाया गया है जिनका सम्बन्ध महावीर, श्रेणिक अथवा जैन संस्कृति से रहा है। ऐसे चरितों में धन्यकुमार, शालिभद्र, पृथ्वीचन्द्र, आद्रक कुमार, जयकुमार, सुलोचना, पुण्डरीक, वरांग, श्रेणिक, अभयकुमार, गौतम, मृगापुत्र, सुदर्शन, चन्दना, मृगावती, सुलसा आदि व्यक्तियों पर लिखे गये चरित काव्यों की संख्या शताधिक है। आचार्यों को भी चरित काव्यों का विषय बनाया गया है। भद्रबाहु, स्थूलभद्र, कालकाचार्य वज्रस्वामी, पादलिप्तसूरि, सिद्धसेन वप्पिभट्टि, हरिभद्रसूरि, सोमसुन्दरसूरि, सुमतिसम्भव, हीरसौभाग्य, विजयदेव, भानुचन्द्रगणि, दिग्विजय, जिनकृपाचन्द्रसूरि आदि ऐसे ही प्रमुख आचार्य कहे जा सकते हैं जिनपर जैन विद्वानों ने संस्कृत काव्य लिखे हैं।
जैनाचार्यों ने ऐतिहासिक महापुरुषों पर भी संस्कृत महाकाव्य का सृजन किया है इससे उनके ऐतिहासिक ज्ञान का पता चलता है। हेमचन्द्र के कुमारपाल
१. महासेनाचार्य सकलकीर्ति, शुभचन्द्र, यशोधर आदि के प्रद्युम्नचरित उपलब्ध हैं। २. मल्लिषेण, धर्मधर, दामनन्दि आदि के नागकुमारचरित प्राप्त हैं। ३. कुम्मापुत्त और अम्बड को भी प्रत्येक बुद्धों से सम्बद्ध किया जाता है।
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