Book Title: Bharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Aavdan
Author(s): Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 64
________________ कुछ प्रत्येकबुद्धों द्वारा प्ररूपित हैं और कुछ संवाद रूप में कहे गये हैं। २. आवस्सय इसमें छः नित्य क्रियाओं का छः अध्यायों में वर्णन है। चतुर्विंशतिस्तव, वन्दन, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग और प्रत्याख्यान । ३. दसवेयालिय के लिए इसके रचयिता आर्यसम्भव हैं। उन्होंने इसकी रचना अपने पुत्र की थी। विकाल अर्थात् सन्ध्या में पढ़े जाने के कारण इसे दसवेयालिय कहा जाता है। यह दस अध्यायों में विभक्त है जिनमें मुनि आचार का वर्णन किया गया है। ५७ ४. पिण्डनिर्युक्ति इसमें आठ अधिकार और ९७१ गाथायें हैं, जिनमें उद्गम, उत्पादन, एषणा आदि दोषों का प्ररूपण किया गया है। इसके रचयिता भद्रबाहु माने जाते हैं। ५. ओघनियुक्ति इसमें ८११ गाथायें हैं, जिनमें प्रतिलेखन, पिण्ड, उपाधि - निरूपण, अनायतनवर्जन, प्रतिसेवना, आलोचना और विशुद्धि का निरूपण है । छेदसूत्र सामायिक, श्रमणधर्म के आचार-विचार को समझने की दृष्टि से छेदसूत्रों का विशिष्ट महत्त्व है इनमें उत्सर्ग (सामान्य विधान), अपवाद, दोष और प्रायश्चित्त विधानों का वर्णन किया गया है । छेदसूत्रों की संख्या ९ है दसासुयक्खन्ध, बृहत्कल्प, ववहार, निसीह, महानिसीह और पंचकप्प अथवा जीतकप्प । - Jain Education International 2010_04 १. दसासुयक्खन्ध दसासुयक्खन्ध अथवा आयारदसा में दस अध्ययन हैं। उनमें क्रमशः असमाधि के कारण शबलदोष (हस्तकर्म मैथुन आदि), आशातना (अवज्ञा), गणिसम्पदा, चित्तसमाधि, उपासक-प्रतिमा, भिक्षु प्रतिमा, पर्यूषणाकल्प, मोहनीयस्थान और आयातिस्थान (निदान) का वर्णन मिलता है। महावीर के जीवनचरित की दृष्टि से भी यह ग्रन्थ महत्त्वपूर्ण है । इसके रचयिता निर्युक्तिकार से भिन्न आचार्य भद्रबाहु माने जाते हैं। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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