Book Title: Bharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Aavdan
Author(s): Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 80
________________ भी यहाँ हुआ है। दर्शन और सिद्धान्त से लेकर भाषाविज्ञान, व्याकरण और इतिहास तक सब कुछ प्राकृत जैन साहित्य में निबद्ध है। उसके समूचे योगदान का मूल्यांकन अभी शेष है। संस्कृत साहित्य जैनाचार्यों ने प्राकृत भाषा के समान संस्कृत भाषा को भी अपनी अभिव्यक्ति का साधन बनाया और इस क्षेत्र को भी अपने पुनीत योगदान से अलंकृत किया। यद्यपि संस्कृत भाषा में सर्वप्रथम रचना करने वाले जैनाचार्यों में उमास्वाति अथवा उमास्वामी का नाम बड़ी श्रद्धा के साथ स्मरण किया जाता है पर हम यहाँ समूचे संस्कृत जैन साहित्य को विविध विधाओं में वर्गीकृत कर उसका संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करना अधिक उपयोगी समझ रहे हैं। साथ ही विधाओं का जैसा क्रम प्राकृत साहित्य में हमने रखा है वही क्रम यहाँ भी अपना रहे हैं। चूर्णि और टीका साहित्य चूर्णि साहित्य प्राय: प्राकृत में लिखा गया है। कुछ चूर्णियाँ ऐसी हैं जिनमें संस्कृत के कुछ गद्यांश और पद्यांश उद्धृत किये गये हैं। उत्तराध्ययनधूर्णि, आचारांगचूर्णि, सूत्रकृतांगचूर्णि, निशीथचूर्णि और बृहतकल्पचूर्णि ऐसे ही ग्रन्थ हैं जिनमें अल्पसंस्कृत-मिश्रित प्राकृत का प्रयोग हुआ है। __आगम साहित्य पर जो टीकात्मक अथवा विवरणात्मक ग्रन्थ लिखे गये हैं वे संस्कृत में हैं। इस प्रकार की प्रमुख टीकायें और उनके टीकाकार इस प्रकार हैं श्लोक प्रमाण जिनभद्र (७वीं शती) विशेषावश्यकभाष्य स्वोपज्ञवृत्ति ३६०३ " हरिभद्र (८वीं शती) आवश्यकवृत्ति दशवैकालिकवृत्ति जीवाभिगमवृत्ति प्रज्ञापनावृत्ति नन्दिवृत्ति अनुयोगद्वारवृत्ति कोट्याचार्य (८वीं शती) विशेषावश्यकभाष्यविवरण १३७०० " शीलांक (९-१०वीं शती) आचारांगविवरण २२००० " १२००० " Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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