Book Title: Bharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Aavdan
Author(s): Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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टीका विवरण, वृत्ति, अवचूर्णी पंजिका एवं व्याख्या रूप में विपुल साहित्य की रचना हुई है। इनमें आचार्यों ने आगमगत दुर्बोध स्थलों को स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है। इस विद्या में निर्युक्ति, भाष्य, चूर्णि और टीका साहित्य विशेष उल्लेखनीय है ।
निर्युक्ति साहित्य
जिस प्रकार यास्क ने वैदिक पारिभाषिक शब्दों की व्याख्या के लिए निरुक्त की रचना की उसी प्रकार आचार्य भद्रबाहु (द्वितीय) ने आगमिक शब्दों की व्याख्या के लिए नियुक्तियों का निर्माण किया। ये निर्युक्तियाँ निम्नलिखित दस ग्रन्थों पर लिखी गई हैं। आवश्यक, दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, आचारांग, सूत्रकृतांग, दशाश्रुतस्कन्ध, बृहत्कल्प, व्यवहार, सूर्यप्रज्ञप्ति और ऋषिभाषित। इनमें अन्तिम दो नियुक्तियाँ उपलब्ध नहीं। इन नियुक्तियों की रचना प्राकृत पद्यों में हुई हैं। बीच-बीच में कथाओं और दृष्टान्तों को भी नियोजित किया गया है। सभी नियुक्तियों की रचना निक्षेप पद्धति में हुई है। इस पद्धति में शब्दों के अप्रासंगिक अर्थों को छोड़कर प्रासंगिक अर्थों का निश्चय किया गया है।
'आवश्यकनियुक्ति' में छ: अध्ययन हैं— सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव, वन्दना, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग और प्रत्याख्यान । इसमें सप्तनिह्नव तथा भगवान् ऋषभदेव और महावीर के चरित्र का आलेखन हुआ है। इस नियुक्ति पर जिनभद्र, जिनदासगणि, हरिभद्र, कोट्याचार्य, मलयगिरि, मलधारी हेमचन्द्र, माणिक्यशेखर आदि आचार्यों ने व्याख्या ग्रन्थ लिखे। इसमें लगभग १६५० गाथायें हैं । 'दशवैकालिकनिर्युक्ति' (३४१ गा.) में देश, काल आदि शब्दों का निक्षेप पद्धति से विचार हुआ है। उत्तराध्ययननियुक्ति (६०७ गा.) में विविध धार्मिक और लौकिक कथाओं द्वारा सूत्रार्थ को स्पष्ट किया गया है। आचारांगनिर्युक्ति (३४७ गा.) में आचार, अंग, ब्रह्म, चरण आदि शब्दों का अर्थ निर्धारण किया गया है। सूत्रकृतांगनिर्युक्ति (२०५ गा.) में मतमतान्तरों का वर्णन है । दशाश्रुतस्कन्ध निर्युक्ति में समाधि, स्थान, दसश्रुत आदि का वर्णन है। यह नियुक्ति बृहत्कल्पनिर्युक्ति ( ५५९ गा.) और व्यवहारनिर्युक्ति के समान अल्पमिश्रित अवस्था में उपलब्ध होती है। इनके अतिरिक्त पिण्डनिर्युक्ति, ओघनिर्युक्ति, पंचकल्पनिर्युक्ति, निशीथनियुक्ति और संसक्तनियुक्ति भी मिलती है । भाषाविज्ञान की दृष्टि से इन नियुक्तियों का विशेष महत्त्व है।
भाष्य साहित्य
निर्युक्तियों में प्रच्छन्न गूढ़ विषय को स्पष्ट करने के लिए भाष्य लिखे गये ।
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