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भारतीय पुरालिपि-शास्त्र फल. II, 28, XVIII जैसी औ की मात्रा भी मिलती है। यह पुरानी शैली की है।
रुद्रदामन के पिता जयदामन और पितामह चष्टन के अपेक्षाकृत पुराने सिक्कों180 पर मिलने वाले अक्षरों में कोई विशेष अंतर नहीं है । जयदामन के सिक्के संभवत: उज्जैनी में ढाले गये थे। उत्तरकालीन क्षत्रपों के अभिलेखों में181 जूनागढ़ के उस अभिलेख के अक्षर जो रुद्रदामन के पुत्र रुद्रसिंह के शासन काल में खोदे गये थे गिरनार की प्रशस्ति के अक्षरों से पूरी तरह मिलते-जुलते हैं। उसी राजा के संवत् 103 (या 180 ई.) के गुंडा के अभिलेख और उसके बेटे रुद्रसेन के संवत् 127 (?) या 204-5 ई.(?) के जसदन अभिलेख में कुछ और अक्षरों के विकसित रूप मिलते हैं। इन दोनों अभिलेखों में किसी अक्षर के नीचे आने वाला य द्विपक्षीय होता है। दूसरे अभिलेख में कई बार गुप्तकालीन म (फल. IV, 31, 1 तथा आगे) के दर्शन होते हैं। ए की मात्रा भी पंक्ति के ऊपर लगी मिलती है (मिला. उदाहरणार्थ ने फल. VII, 27, V)। यही म या ऋजु आधार वाला वैसा ही चिह्न उत्तरकालीन क्षत्रपों के सिक्कों पर प्रायः मिलता है ।182 संभवतः यह उत्तरी प्रभाव है। शायद इस लिपि के साथ-साथ कोई उत्तरी लिपि भी वहाँ इस्तेमाल में थी (दे. आगे 28, अ) । (अ) पश्चिमी डेक्कन और कोंकण की गुफाओं के अभिलेखों की लिपियां
फलक III पश्चिमी डेक्कन और कोंकण में कई गुफाएं हैं जहाँ अनेक अभिलेख खुदे हैं। नासिक, जुन्नार, कार्ले, कण्हेरी, कुड़ा आदि की गुफाओं की लेखन शैली में तीन विभेदों के दर्शन होते हैं। (1) 'पुरागतिक' या 'पश्चगतिक' प्रकार, (2) अपेक्षाकृत विकसित प्रकार जिसमें दक्षिणी की विशिष्टताओं के धुंधले चिह्न हैं और (3) अलंकारिक शैली । इनमें पहली दो क्षहरात राजा और क्षत्रप नहपान के
____180. क., क्वा. मि. ई. फल. I; ज. रा. ए. सो. 1890, पृष्ठ 20 का फलक; ब., आ. स. रि. वे. इं. 2, फल. 7.
181. मिला. ब. आ. स. रि. वे. ई. II, फल. 20; ज. बा. ब्रां. रा. ए. सो. 8, 23. 4; संस्कृत ऐंड प्राकृत इंस्क्रिप्शंस, भावनगर) फल. 16-17 (अविश्वसनीय) की प्रतिकृतियाँ । 182. पा. टि. 180 में उद्धृत फलक देखि. ।
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