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संख्यांक-लेखन
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कभी तो बहुत-से-घसीट या जानबूझकर संशोधित किये रूप मिलते हैं जिनमें अक्षरों से किसी प्रकार की रूपसमता नहीं होती :
___4=क (I), कि (III, 400, 4000 में, IV, A; V, A; VI, B); क्रि (V, B; IX, A), क ( III, A; VI, A; VIII, A; IX, B), (X, A), ल्क (प्रतिकृति इ. ऐ. V, 154) रक ।
5= जिसमें र की लकीर त की खड़ी लकीर में बेतरतीब लगती है (V, A; VIII, A, B; IX, B; X, A; XV, A), त्रा (VII, A), तु (IX, A), नु (IV, B), न, ना (XI, A, B), तु (XIII, A), ह (XIII, B; XIV, A; XVII, A), ह (XVI, A), V, A. B के दो घसीट रूप जिनका कोई उच्चारणगत मूल्य नहीं है।
6=ज, स300 (I, II; मिला. फल. II, 15, III; 39, VII), क (III, 6000 में; IV, V), फ्रा (IX, XI); फा (XIII), फ (XIV), तथा चार घसीट चिह्न (VI-VIII, XV) जिसमें पहला संभवतः ज से, दूसरा स से, और तीसरे और चौथे फ से निकले हैं। ____7=ग्र या गु (HI-VI, IX-XI, XIII, XV), ग (VII) इसके साथ एक घसीट चिह्न (XII) भी है जो स्तं. XIII जैसे न के चिह्न से निकला है।
(पूर्व पृष्ठ से) स्त: XII: ज. बा. बां. रा. ए. सो. XVI, 108 की प्रतिकृति के आधार
पर। स्तंः XIII, XIV: इं. ऐ. IX, पृ. 164 तथा आगे की प्रतिकृतियों के
आधार पर। स्तं: XV: इ. ऐ. XIII, पृ. 120; ए. ई. III, 127 की प्रतिकृतियों के
__ आधार पर। स्तं: XVI; फ्ली. गु. इं. (का. इं. इं. III) से. 40, 41, 55, 56, 81
की प्रतिकतियों से काटकर। स्तं: XVII: इं. ऐ. XV, 112, 141 की प्रतिकृतियों से काटकर । स्तं: XVIII, ज. ए. सो. ब्र. XL. फल. 2 की प्रतिकृति के आधार पर ।
390. संभवतः इसी प्रकार पढ़ना चाहिए; यह फ या फु का संशोधित रूप नहीं है।
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