Book Title: Bharatiya Puralipi Shastra
Author(s): George Buhler, Mangalnath Sinh
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 205
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भूल-सुधार १८७ अंशों को रेखांकित कर देते हैं। बाद में, लेखन-त्रुटि को दिखाने के लिए पंक्ति के ऊपर या नीचे बिंदियां या छोटी लकीरें बना देते थे। हस्तलिखित ग्रंथों में भी यही विधि अपनाई गई है। इनमें बाद में जिस अंश को निकालना होता था उसे हल्दी या किसी पीली लेई से ढक देते थे । ताम्रपट्टों पर यह अंश हथोड़े से पीटकर मिटा देते थे और उस स्थान को चिकना बना कर उस पर सही इबारत खोद देते थे। ऐसे भी ताम्रपट्ट हैं जिन पर सारी इबारत मिटाकर फिर से लेख खोदा गया है । 475 ___ अशोक के आदेश-लेखों और अन्य प्राचीन अभिलेखों में भूल से छूटे अक्षर या शब्द पंक्ति के ऊपर या नीचे बनाये गये हैं। इनमें इस बात का ध्यान नहीं कि जहाँ छूट हो वहीं इन्हें लिखा जाय ।476 कभी-कभी तो छूटा हुआ अक्षर दो अक्षरों के बीच के थोड़े से स्थान में ही बना दिया गया है। बाद के अभिलेखों और हस्तलिखित ग्रंथों में जहाँ छूट होती थी वहाँ एक खड़ा या झुका हुआ क्रास बना दिया गया है जिसे काकपद या हंसपद कहते थे। फिर छूटा हुआ अक्षर या शब्द हाशिये में177 या पंक्तियों के बीच में ही बना दिया गया है। ____ कभी-कभी काकपद या हंसपद के स्थान पर स्वस्तिक भी मिलता है।478 दक्षिण भारतीय हस्तलिखित ग्रथों में हंसपद का इस्तेमाल सभाष्य सूत्रों में अभीप्सित छूट दिखलाने के लिए भी हुआ है ।479 दूसरे स्थानों पर अभीप्सित छूट के लिए या जहाँ मूल प्रति में दोष था वहाँ स्थान छोड़ देते थे । ऐसी छूटों के लिए पंक्ति पर बिंदु बना देते थे या उसके ऊपर नन्हीं रेखाएं खींच देते थे ।480 आधुनिक काल में आद्य अ का लोप कर देते हैं। इसे अवग्रह कहते हैं। इसका 475. ई.ऐ. VII, 251 (सं. 47); XIII, 84, टिप्पणी सं. 23; ए. ई. III, 41 टिप्पणी 6. ___476. उदाहरणार्थ देखि. कालसी आदेशलेख XIII, 2, पंक्ति 11; बाद में इसी तरह का दृष्टांत ए. ई. III, 314, पंक्ति 5 पर मिलेगा। 477. देखि.. उदाहरणार्थ प्रतिकृतियाँ, ए. ई. III, 52, फल. 2, पंक्ति 1; ए. ई. III, 276, पंक्ति 11. ____478. प्रतिकृति, इं. ए. VI, 32, फल. 3. ___479. आपस्तंब धर्मसूत्र, 2. 2 (10). ___480. उदाहरणार्थ मिला. इं. ऐ. VI, 19, टिप्पणी पंक्ति 33; 20, टिप्पणी, पं. 11; कश्मीर की हस्तलिखित पुस्तकों में पर्याप्त सामान्य है। 187 For Private and Personal Use Only

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