Book Title: Bharatiya Puralipi Shastra
Author(s): George Buhler, Mangalnath Sinh
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 223
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लेखक-उत्कीर्णक २०५ ते थे वे संभवतः राजा के कार्यालय में रहते थे । इनके रक्षक अक्षपटलिक का उल्लेख प्रायः मिलता है ।564 3. पत्रों का उपचार जातकों में महत्वपूर्ण पत्रों को सफेद कपड़े में लपेट कर उन्हें मुद्रांकित करने का वर्णन आया है ।565 आज भी सरकारी या विशेष समारोहों के पत्रों को प्रायः रेशम या जरी के लिफाफों में भेजते हैं। ताड़पत्रों पर लिखे सामान्य पत्रों की प्रक्रिया और सरल है। पत्तियों को मोड़कर इनके सिरों को चीरकर परस्पर जोड़ देते हैं। फिर सारी पत्ती को सूत से बांध देते हैं 1566 संभवतः भूर्ज पर लिखी चिट्ठियाँ भी इसी तरह बांधते थे । बाण के अनुसार हरकारा (दीर्घाध्वग, लेखहारक) सारी चिट्ठियों को कपड़े के एक थैले में रखकर उसे अपने गले से लटका लेत था।587 ____39. लेखक, उत्कीर्णक और संगतराश यद्यपि प्राचीनतम भारतीय लिपि ब्राह्मण अध्यापकों की सृष्टि थी और काफी हाल तक लिखना-पढ़ना ब्राह्मणों तक ही सीमित था, फिर भी कुछ ऐसे प्रमाण हैं जिनसे अनुमान होता है कि अति प्राचीन काल में भी यहाँ पेशेवर लेखक या लेखकों की जाति थी जिसका काम ही लिखकर जीविका अर्जन करना था । ऐसे लोगों का सबसे पुराना नाम भी लेखक था। इस नाम का उल्लेख दक्षिणी बौद्ध आगमों में आया है। (दे. ऊपर पृ. 10) । सांची-अभिलेख, स्तूप 1, सं. 143568 में दाता के इसी व्यवसाय का स्पष्ट उल्लेख है। मैंने इसका अनुवाद 'हस्तलिखित ग्रंथों का प्रतिलिपिक', या 'लिपिकार, क्लर्क' किया है जो संदे 564. मिला. राजतरंगिणी V, 249, 397 का स्टीन का अनुवाद और टिप्पणियाँ। 565. बु. इं., स्ट. III, 2, 8; फासबोल, जातक II, पृ. 173 तथा आगे। 566. ब., ए. सा. इं. पै. 89. .567. हर्षचरित, 58, 167. 568. ए. ई. II, 369, 372. 205 For Private and Personal Use Only

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