Book Title: Bharatiya Puralipi Shastra
Author(s): George Buhler, Mangalnath Sinh
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 199
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विराम-चिह्न १८१ खोतन के धम्मपद में प्रत्येक गाथा के अंत में एक गोल चिह्न, प्रायः लापरवाही से बनाते हैं । यह चिह्न आधुनिक शून्य से मिलता है ।437 प्रत्येक वग्ग के अंत में एक ऐसा चिह्न मिलता है जो विभिन्न अभिलेखों, जैसे फ्ली. गु. इ. (का. इ. इं. III), सं. 71, फलक 41 A के अंत में मिलता है। संभवत: यह कमल का प्रतीक है। ब्राह्मी में शुरू से ही विरामादि चिह्न मिलते हैं । ये चिह्न निम्नलिखित हैं : 1. अशोक के आदेश-लेखों में438 शब्द या शब्द-समूहों को पृथक करने के लिए (बे-सिलसिले और कभी-कभी गलत ढंग से) एक दंड बनता है । बाद में यही चिह्न गद्य को पद्य से पृथक् करने130 या वाक्यांश 0 वाक्या , पद 42 या छंद443 के अंत में आता है। कभी-कभी प्रलेख की समाप्ति का सूचक होकर भी यह चिह्न लगता है । 44 पूर्वी चालुक्यों के अभिलेखों में145 दंड के सिरे पर एक आड़ा डंडा भी बनता है। तब इस चिह्न का रूप [ हो जाता है। ___2. जुनार अभिलेख सं. 24-29 में अंकों और एक बार तो दाता के नाम के बाद भी दो खड़ी लकीरें || मिलती हैं। बाद में वाक्यों 146, पदों 447, छंदों148, 437. ओल्डेनवर्ग, Predvaritelna Zamjetkao Buddhiiskoi rukopisi, nepisannoi pismenami Kharosthi, St. Petersburg, 1897 की प्रतिकृति से मिला. 438. कालसी आदेशलेख XII-XIII, 1; साहसाराम. 439. देखि. उदाहरणार्थ प्रतिकृति, फ्ली. गु. इं. (का. इं. ई. III) सं. 21, पंक्ति 16. 440-441. देखि. उदाहरणार्थ प्रतिकृति वही. सं. 80, फल. 44. 442. , वही. सं. 42 फल. फल. 28. 443. ,, , सं. 38, फल. 24, पंक्ति 35. 444. ,, , सं. 19, फल. 12 A. 445. ,, , इं. ऐ. XII, 92; XIII, 213. 446. , अमरावती सं. 28; इं. ऐ. VI, 23, 1, 9, _(काकुत्स्थ वर्मन का ताम्रपट्ट). 447. , , फ्ली. गु. इं. (का. ई. ई. III), सं. 17, फल. 10. , , सं. 17 फल. 10; और 18, फल 11. 181 448. For Private and Personal Use Only

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