________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नागरी लिपि
११३
प्रक्रिया 8वीं शती से शुरू होती है (फल. V, 24, III) । ऊपर 22, आ, 10
और फल. IV, 21, III से भी तुलना कीजिए। इसके बाद शीघ्र ही चिह्न का रूप आधुनिक हो जाता है। इसमें सीधी शिरोरेखा होती है और इससे लटकती तीन रेखाएं (फल. V, 24, VII, आदि; VI, 29, XV आदि)।
18. त का आधुनिक रूप जिसमें दाएं खड़ी रेखा होती है अशोक के आदेशलेखों में भी था । आठवीं शती में यह पुनः प्रकट होता है (फल. IV, 22, XXI) और 10 वीं शती में नियमित हो जाता है।
19. थ का जो आधुनिक रूप है वह 7वीं शती के खांचेदार रूप से निकला है (फल. XIV, 23, XVII)। यह रूप उसी काल के अभिलेखों में प्राप्त होता है (फल. IV, 23, XVIII आदि)। ____20. सातवीं शती में द के निचले भाग में एक शोशा मिलता है (फल. IV, 24, XVII आदि)। इसके बाद शीघ्र ही यह शोशा आधुनिक अक्षर की दुम बन जाता है। ____21. आठवीं शती में न का दायाँ भाग कभी-कभी खड़ी रेखा होता है । इसके बाएं एक फंदा जुड़ता है (फल. IV, 26, XVIII, XIX)। आगे 30 से भी तुलना कीजिए।
22. फ में मध्य में एक खड़ी रेखा के बनने से इसका रूप परिवर्तन हो जाता है। (ऊपर 1 में देखिए। ) महाप्राणता का चिह्न भंग पहले नये चिह्न के सिर पर लगता है (फल. IV,28, XXII; V, 31, III, आदि)। किंतु 11वीं शती में यह नीचे की ओर खिसक आता है (फल, V, 31, XII) और 12वीं शती में वहाँ पहुँच जाता है जहाँ आधुनिक काल में है (फल. VI, 31, XXXXIII) । किंतु फल. V, 31, II, XIV जैसे रूप भी दुर्लभ नहीं हैं। इनके प्रयोग संभवतः बहु-प्रचलित घसीट लेखन के कारण हैं।
23. व का उच्चारण प्रायः ब ही करते थे। इसलिए उत्तरी, मध्य और पश्चिमी भारत में ब का प्राचीन चिह्न लुप्त हो गया। सातवीं और उसके बाद की शताब्दियों में अभिलेखों में उसकी जगह व का चिह्न ही प्रयोग में लाने लगे (फल. IV, 29, XX; V, 32, II आदि) । हस्तलिखित ग्रंथों में तो यह परिवर्तन और पहले से मिलता है (फल. VI, 37, V, VI)। 11वीं शती से एक नया ब ही चल निकला। इसमें व के फंदे के बीच में एक बिंदी रख देते थे । आधुनिक देवनागरी ब इसी से निकला है।
113
For Private and Personal Use Only