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बट्टेत लिपि
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XXI,
ण ( फल. VII, 26, XXII) में संभवतः इससे भी पहले की विशेषताएं मिलती हैं । अनुमान है कि 'गोलाईदार' लिपि का उदय 7वीं शती से पहले हो चुका था पर तमिल और ग्रंथ - लिपि के विकास के साथ-साथ कालान्तर में इसका भी रूप परिवर्तन हो गया । अद्यावधि प्राप्त अभिलेखों की संख्या बहुत कम है । इसलिए इस अनुमान को अभी तक निश्चय का रूप नहीं मिल पाया है ।
वट्टेऴुत्तु क ( फल. VIII, 11-14, XXI, XXII) किसी फंदेदार रूप से निकला प्रतीत होता है । इसका रूप परिवर्तन भी वैसा ही है जैसा कि अंकलेखन की दाशमिक प्रणाली में अंक 4 का ( मिला. फल. IX, B4, VVII, और IX ) । तमिल त ( मिला. स्त. XVII, XVIII) के फंदे को गांठ में बदलकर और इसकी दुम को सिर तक खींच देने से वट्टेळुत्तु का विचित्र त फल. VIII, 25-28, XXI, XXII) बना है । इससे भी असाधारण अक्षर न ( फल VIII, 29, XXI) है। यह भी उत्तरकालीन तमिल न से निकला दिखाया जा सकता है । इसमें सिर से एक लकीर नीचे को लटका दी गई है ।
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