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भगवान् महावीर का जीवन और दर्शन
भगवान् महावीर का जन्म बौद्धिक जागरण के युग में हुआ था। उस युग में भारत में हमारे औपनिषदिक ऋषि नित-नूतन चिन्तन प्रस्तुत कर रहे थे। महावीर और बुद्ध भी उसी वैचारिक क्रांति के क्रम में आते हैं, लेकिन प्रश्न यह उठता है कि महावीर की विशेषता क्या थी? बुद्ध की विशेषता क्या थी? यह एक सुनिश्चित तथ्य है कि कोई भी महापुरुष अपने युग की परिस्थितियों की पैदाइश होता है। महावीर और बुद्ध जब इस भूमण्डल पर आये, उनके सामने दो प्रकार की समस्याएँ थीं। एक ओर वैचारिक संघर्ष था, तो दूसरी ओर मनुष्य अपनी मानवीय गरिमा और मूल्यवत्ता को भूलता जा रहा था। महावीर ने जो मुख्य कार्य किया, वह यह कि उन्होंने मनुष्य को उसकी विस्मृत महत्ता या गरिमा का बोध कराया। अगर महावीर के जीवन-दर्शन को दो शब्दों में कहना हो, तो हम कहेंगे 'विचार में उदारता और आचार में कठोरता।'
वैचारिक क्षेत्र में महावीर की जीवनदृष्टि जितनी उदार, सहिष्णु और समन्वयवादी रही, आचार के क्षेत्र में महावीर का दर्शन उतना ही कठोर रहा। महावीर के जीवन के सन्दर्भ में हमारे सामने एक बात बहुत ही स्पष्ट है, वह यह कि वह व्यक्ति राजपरिवार में, सम्पन्न परिवार में जन्म लेता है, लेकिन फिर भी उस सारे वैभव को ठुकरा देता है और श्रमण जीवन अंगीकार कर लेता है। आखिर ऐसा क्यों करता है? उसके पीछे क्या उद्देश्य है? क्या महावीर ने यह सोचकर संन्यास ले लिया कि श्रमण या संन्यासी होकर ही मुक्ति प्राप्त की जा सकती है? ऐसी बात नहीं थी, क्योंकि महावीर ने स्वयं ही आचारांग में कहा