Book Title: Bhagvana Mahavira Diwakar Chitrakatha 009 010
Author(s): Purnachandramuni, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 2
________________ करुणानिधान भगवान महावीर चौबीसवें तीर्थंकर चरम तीर्थाधिपति श्रमण भगवान श्री महावीर स्वामी का जन्म ईस्वी पूर्व ५९९, अर्थात् वि. पू. ५४२ चैत्र शुक्ला १३ की शुभ रात्रि में हुआ। वे बाल्यकाल से ही धीर, वीर, साहसी करुणाशील और सर्वोच्च पुण्य-लक्ष्मीवंत थे। अनन्तबली होते हुए भी परम क्षमाशील थे। “प्रत्येक जीव को अभय दो, सबके साथ मैत्रीपूर्ण और समतापूर्ण व्यवहार करो"-इस सिद्धान्त को, उपदेश देने से पहले उन्होंने अपने जीवन में उतारा। ३० वर्ष की युवावस्था में संयम और त्याग की कठोर साधना करने के लिए उन्होंने राज-वैभव का त्यागकर मुनिव्रत धारण किया। लगभग १३ वर्ष तक अत्यन्त भीषण उपसर्ग, कष्ट और परीषह सहने के बाद उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ। समस्त प्राणीगण को समता, संयम, अपरिग्रह, अनेकान्त और अहिंसा का उपदेश देते हुए ७२ वर्ष की अवस्था में पावापुरी में निर्वाण को प्राप्त हुए। 'तीर्थंकर' पद संसार का श्रेष्ठतम आध्यात्मिक उच्च पद है। अनेक जन्मों में तप-ध्यान-संयम-करुणा-मैत्री आदि की दीर्घ साधना करने के बाद कोई विरल आत्मा इस श्रेष्ठता को प्राप्त करती है। इसीलिए भगवान महावीर की जीवन कथा पिछले २६ जन्मों से प्रारंभ करके वर्तमान जीवन तक ली गई है। इन घटनाओं से पता चलता है कि कितनी सुदीर्घ साधना के बाद यह पद प्राप्त होता है। इस जीवन कथा का मुख्य आधार कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य श्री हेमचन्द्र सूरीश्वर जी कृत त्रिषष्ठिशलाका पुरुष चरित्र है। अध्यात्मयोगी आचार्यदेव श्रीमद्विजय कलापूर्ण सूरीश्वर मी म. सा. के शिष्यरत्न मुनि श्री पूर्णचन्द्र विजय जी ने संक्षिप्त किन्तु सार रूप में यहाँ भगवान महावीर का दिव्य जीवन-वृत्त चित्र कथा के माध्यम से प्रस्तुत किया है। लेखक : पूज्य मुनिश्री पूर्णचन्द्र विजय जी म. सा. संपादक : श्रीचन्द सुराना 'सरस' प्रकाशन प्रबन्धक: संजय सुराना चित्रांकन : श्यामल मित्र © सर्वाधिकार प्रकाशकाधीन : राजेश सुराना द्वारा दिवाकर प्रकाशन ए-7, अवागढ़ हाउस, एम. जी. रोड, आगरा-282 002 (भारत) दूरभाष : (0562) 351165, 51789 mamerioratysory

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