Book Title: Bhagavana Mahavira Hindi English Jain Shabdakosha
Author(s): Chandanamati Mata
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan
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की प्रामाणिकता कई गुना बढ़ गई। उठते-बैठत, सोते-जागते हर पल उस दिन द गय शब्दा के विषय में ऊहापर, अग्धसी विचार-विमर्श, प्राचीन शास्त्रों का अवलोकन इत्यादि सभी कियाओं मं समस्त संघ का वातावरण ही मानों शब्दकोशमयी हो गया था। मस्तिष्क रूपी व्याम मे शब्दरूपी नक्षत्र ही सर्वत्र ध्यान हो गये थे, वस्तुत: अभीन्य ज्ञानोपयोग को उस पारी अपहन करते हुए जो असीम आल्हाद हृदय में उत्पन्न होता था, वह वचनातीत है। मेरे जीवन का यह अद्भुत स्वर्णिम अनुभव था। मन में कई बार विचार आता था कि ज्ञान का अंशमात्र भाव उपलब्ध होता है तो कितनी संतुष्टि, कितना हर्ष, कितना सुख मिलता है, फिर केपली भगवान के केयलज्ञान से उत्पन्न आनंद को मापना तो तीनों लोकों में किसी के लिए भी सभव नहीं है।
अस्तु ! शब्दकोश का मैटर फाइनल होने से पूर्व एक बार पुनः गंध के आद्योपान्त अध्ययन का भाव मेरे हृदय में था, अत: 3 अप्रैल 2004, महावीर जयंती के पश्चात् मैंने पुन: यह काम हाथ में लिया और इस बार प्रत्येक पृष्ठ के एक-एक शब्द को स्वयं पढा, कई स्थानों पर पूज्य माताजी से विचार-विमर्श करके व्याख्याएँ परिवर्तित की परन्तु जिस प्रकार आकाश के तारे गिनना संभव नहीं है, उसी प्रकार पूज्य माताजी से प्रत्येक शब्द पर चर्चा करना संभव नहीं था, अत: कदाचित् संभव है कि कुछ स्थानों पर ऐसे संशोधन अभी भी शेष बचे हों। वस्तुत: किसी भी शब्दकोश में प्रामाणिकता लाने हेतु जब पुन: पुन: उसका विशुद्धीकरण किया जाता है, तभी प्रामाणिक शब्द कोश की एक उत्कृष्ट कृति समाज के समक्ष आ पाती है। हम इस शब्दकोश को इसी आशा के साथ आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं कि जहाँ अभी भी संशोधन की आवश्यकता होगी. उसक विषय में सुधी पाठकजन हमें अवश्य सूचित करेंगे।
पूज्य गणिनी माताजी के उपकारों के प्रति कुछ भी कहना गंगा के जल से गंगा को ही संतर्पित करना है अत: उनकी प्रेरणा एवं सान्निध्य से संशोधित यह पवित्र कोश जन शासन का अमूल्य खजाना मानकर हम समाज के समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं, इससे लाभ प्राप्त कर यदि आप सभी ने अपनी भावी पीदी द्वारा इसका मूल्यांकन करवाया तो हम लोग अपना प्रयास सार्थक समझेंगे।
संघस्थ क्षुल्लकरत्न श्री मोलीसागरजी महाराज ने भी समय-समय पर इसमें अपना योग्य निर्देशन एवं सुझाव प्रदान कर जो सहयोग दिया है यह उनकी धार्मिक अभिरुचि का प्रतीक है। वीर ज्ञानोदय ग्रन्थ्यमाला के सम्पादक एवं दि. जैन त्रिलोक शोध संस्थान. जम्मूदीप- हस्तिनापुर के अध्यक्ष - कर्मयोगी ब्र. रवीन्द्रकुमार जैन ने ग्रन्थ का संकलन एवं प्रकाशन का भार वहन करने के साथ-साथ यथासमय इस कोश के निर्माण में अपने सुझाव प्रदान कर इसे सर्वागीण बनाया है क्योंकि शीघ्र सम्पन्नता के लक्ष्य से प्रारम्भ किया गया यह कार्य विलम्बता के कारण निश्चित रूप से महंगा पड़ा है फिर पी उन्होंने इसकी पूर्णता में जिस धैर्य का परिचय प्रदान किया है वह उनकी दूरगामी दृष्टि का परिचायक है क्योंकि इस प्रकार के मानक ग्रन्थ तो कभी-कभी ही प्रकाशित होने के स्वर्णिम अवसर आते हैं अत: इसके प्रकाशन से निश्चित ही दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध
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