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[ भगवान महावीरऔर अमितगत्याचार्यके उल्लेख है, जिनमें समयको निर्दिष्ट करते हुये 'विक्रम नृपकी मृत्युसे' ऐसा उल्लेख किया गया है । इसके विषयमें जैन विद्वान् प० युगलकिशोरनी लिखते हैं कि "यद्यपि, विक्रमकी मृत्युके बाद प्रनाके द्वारा उसका मृत्यु सवत प्रचलित किये जानेकी बात जीको कुछ कम लगती है, और यह हो सकता है कि अमितगति आदिको उसे मृत्यु सवत् समझनेमे कुछ गलती हुई हो, फिर भी ऊपरके उल्लेखोसे इतना तो स्पष्ट है कि प्रेमीनीका यह मन नया नही है-आजसे हजार वर्ष पहिले भी उस मतको माननेवाले मौजूद थे और उनमें देवसेन तथा अमितगति से आचार्य भी शामिल थे।"' इतना होते हुये भी हमें उपरोक्त जीवन संवन्ध विवरणको देखते हुये मुख्तार साहबसे सहमत होना पड़ता है। इसके साथ ही यह दृष्टव्य है कि 'त्रिलोकप्रज्ञप्ति मे जहा अन्यमत वीरनिर्वाण सवत्मे बतलाये गये है, वहा इसका उल्लेख नहीं है। इस अवस्थामें देवसेनाचार्य और अ मतगति आचार्यने भूलसे ऐसा उल्लेख किया हो, तो कोई आश्चर्य नही । निसप्रकार हमने म० बुद्ध और भगवान महावीरका सबन्ध स्थापित किया है, उसको देखते हुये यही ठीक प्रतीत होता है।
अव रहा केवल प्रथम मत नो प्राय. सर्वमान्य और प्रचलित है। इस मतकी पुष्टि में निम्न प्रमाण बतलाये जाते है.-। (१) सत्तरि चदुसढजुत्तो तिणकाला विक्कमो हवइ जम्मो ।
अठवरस वाललीला सोडसवासेहि भीम्मए देसे ॥१८॥
१. रलकरण्ड श्रावकाचार (मा० प्र०) पृष्ठ १५१-१५२. २. पूर्व पृष्ठ १५३-१५४.