Book Title: Bhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 272
________________ Bhe moon, thership and ago २५८] [ भगवान महावीरइसके उपरान्त थेरीगाथामें स्पष्ट जैन उल्लेख भिक्षुणी नदोत्तराके विवरणमें है।' इस कथामें कहा गया है कि " कौरवोके राज्यमें स्थित कम्मासदम्म ग्रामके एक ब्राह्मणवंशमे इसका जन्म हुआ था । जब निगन्थोंके निकटसे उसने शिक्षा ग्रहण करली थी, तब वह उन्हींके संघमें सम्मिलित हो गई। वह अपनी बादशक्तिके लिये प्रख्यात् थी सो सर्वत्र विचर कर वाद करती थी। इसी परिभ्रमणमे उसकी भेंट वौद्धाचार्य महामोग्गलानसे हो गई । उनसे वादमें वह परास्त हुई और इसपर उनके उपदेशसे उसने बौद्धभिक्षुणीके व्रत ग्रहण किये । एक दफे अपनी ध्यानावस्थामें उसने कतिपय गाथायें कही थी, जिनका अनुवाद इस प्रकार है:" Fire and the moon, the sun and cle the gouls, I once was wont to worship and adore, Forcgathcring on the nver banks to go, Dorn in the waters for the bething riles S;. Ay, manifold observances I lud Upon me, for I shaicd one half my heid Nor laid mc down to rest save on the curih, Nor cor broke my fast at close of any ss " भावार्थ-"एक समय मैंने अग्नि, चद्रमा, सूर्य और देवताओंकी उपासना की और नदियोके स्नान करनेके लिये वहा भगी गई। फिर अनेक प्रकारके व्रत मैने धारण किये, मै आधे सिरको मुडाती थी, पृथ्वीपर सोती थी और सूर्य अस्त होनेके पश्चात् भोजन ग्रहण नहीं करती थी।" इस कथासे जेनसावियोमें जीवनकी झलक हमें मिलती है। मचमुच निस वीरमघकी साध्वी ऐकाकी सर्वत्र विचर कर १. .७... -

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