Book Title: Bhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 274
________________ २६०] [भगवान महावीर लिया । वह सत्युक डाकू भद्दाके संग आनन्द भोग करता अवश्य था परन्तु उसकी नियत सदा उसके गहनो पर रहती थी। एक रोज वह उसे वाहिर ले गया और वहा उसने गहने मागे । भदाने उसे प्रेमसे समझाना चाहा, पर जब देखा कि यह तो गहनोंका ही भूखा है; तब उसने प्रेमालिंगनके बहाने उसे एक गहरे गढ़ेमें ढकेल दिया । उसका हृदय संसारकी परिस्थिति देखकर थर्रा गया। वह वहांसे सीधी निगन्य सघमें पहुची और वहां आचार्यसे दीक्षा देनेकी प्रार्थना की । इसपर वौद्धाचार्य कहते हैं कि निगन्थोने उससे पूछा "तू किस कक्षाकी दीक्षा ग्रहण करेगी ?" उत्तरमें उसने उनसे सर्वोत्कृष्ट कक्षाकी दीक्षा देनेका अनुरोध किया। इसपर उन्होंने ताडकी कंघी (Palusyra Comb)से उसके बाल नुचवा (tone out) दिये और वह दीक्षित कर ली गई किन्तु उसकी संतुष्टि इस दशामें नहीं हुई इसलिये वह वहांसे चली गई । उपरान्त श्रावस्तीमे, बौद्धाचार्य सारीपुत्तसे वह वादमें हार गई और बौद्ध होगई। वोद्ध भिक्षुणीकी दशामें उसने एक दफे निम्न शब्द कहे थे:“ Harless, dirtladen and half-clads so fared I formerly, dceming that harmless things Had harm nor was I 'ware of harm In many things whcreir, in sooth, harm lay 107." इनमें उसे यह कहती प्रगट किया गया है कि "पहिले मैं केश रहित, मैलसे लदी और एक कपड़ा पहिने विचरा करती थी, मै यह विचारती थी कि उन वस्तुओंमे भी नुकसान है जो सचमुच नुकसानदह नहीं है और उन वस्तुओंसे मैं अजानकार थी जिनमे वस्तुतः नुकसान है । : Literally, haying one garment or cloak.

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