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[ भगवान महावीरवक हो गये ।* इसमें जिन सुणक्खत राजपुत्रका उल्लेख आया है, वे भगवान महावीरके शिष्य थे, यह श्वेताम्बरियोंके 'भगवतीसूत्र से प्रमाणित है। दिगंबर शास्त्रोंमें हमें कोई ऐसा नाम देखनेको मिला नहीं है। संभव है विशेष रीतिसे अध्ययन करनेपर दिगंवर शास्त्रोंमे इन जैन मुनियोंका विवरण मिल जावे । विद्वानोंको ध्यान देना चाहिये। ___अन्ततः धम्मपालकी थेर और थेरीगाथाकी टीका 'परमत्थ'दीपनी में जैन उल्लेख इस प्रकार मिलते हैं। यद्यपि यह टीका
अर्वाचीन रचना है, परन्तु गाथामें जो इसमें विविध भिक्षु भिक्षुणियोंकी संग्रहीत है, वे अवश्य ही बौद्ध पिटक ग्रंथों जितनी प्राचीन है। इस दशामें इनके उल्लेख भी विशेष महत्व है। इनमें उन कतिपय भिक्षु-भिक्षुणियोंका भी उल्लेख है जो जैनधर्मसे बौद्धधर्ममें दीक्षित हुये बतलाए हैं। बौद्धोंके इन धर्म परिवर्तन उल्लेखोमें कितना तथ्य है, यह हम कुछ कह नहीं सके; परन्तु जैसे कि हम प्रारंभमे कह चुके हैं, बौद्धोंके उल्लेखोमें सर्वथा विधर्मियोको स्वधर्ममें ग्रहण करनेका विवरण मिलता है; उनके स्वयं अपने अनुयायियोंके विधर्मी होनेका कहीं कोई उल्लेख सहसा देखनेमें नहीं आता है।
और यह संभव नहीं है कि उनके अनुयायी विधर्मी न हुये हों। ऐसी दशामें उनके कथनकों यथातथ्य स्वीकार करना जरा कठिन है। खैर जो हो, यहां इनका दिग्दर्शन करलेना इष्ट है।
पहिले ही 'थेरी गाथा की टीका कतिपय जैन आर्यिकाओके बौद्ध भिक्षुणी होनेका उल्लेख है। यहां पहिले ही अभयकुमारकी माताका चौद्ध भिक्षुणी होना बतलाया गया है। उसका नाम पद्मावती *माजीव भाग पृष्ट ३५११.Psalme of the sisters.P.30.