Book Title: Bhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 250
________________ २३६] [ भगवान महावीरभी निर्ग्रन्थ मुनियोंको आहार देनेकी आज्ञा कर रहे हैं उसमें यह शब्द दृष्टव्य हैं कि सीहके गृहमें दीर्घकालसे जैनमुनियों (निग्रंथों) को पड़गाहा जाता रहा है । इससे भी जैनधर्मका अस्तित्व बौद्ध धर्म अथवा म० वुद्धसे प्राचीन सिद्ध होता है; क्योकि जब उसका अस्तित्व म० बुद्धसे पहिलेका होगा तब ही सीह बहुत पहिलेसे जैन मुनियोंको आहारदान देसका है। 'महावग्ग' में उपरोक्तके अलावा कोई विशेष उल्लेखनीय जैन विवरण नहीं है। किन्तु उसमे एवं अन्यत्र 'चुल्लवग्ग' आदिमें जो 'तित्थिय' के रूपमें साधुओंका उल्लेख मिलता है, वह हमारी समझसे बहुत कुछ पार्श्वनाथनीकी शिष्यपरम्पराके मुनियोंके लिये लागू है । इतना तो स्पष्ट ही है कि 'तित्थियगण' म० बुद्धसे प्राचीन सम्प्रदायोंके साधु थे परन्तु उनमें प्राचीन जैनमुनियोंका भी उल्लेख उसी रूपमें किया गया प्रतीत होता है क्योंकि जैन सम्प्रदाय म० वुद्धसे पहलेकी प्रमाणित होती है । अतएव इन उल्लेखोंको उपस्थित करके हम यह देखनेका प्रयत्न करेंगे कि वह किस तरह प्राचीन जैनमुनियोसे सम्बन्ध रखते हैं । 'महावग्ग में एक स्थानपर निन्न उल्लेख है: at that time the Bhikkhus conferred tho Upasampadil ordination on persons that had Deither alms-bovl nor robes Thcy went out for alws baked and (received alios) with their hands. People wro annoyed, murmared and became angry, saying, 'Like I'be Titthiyas, 1.70 3.2" १. हिस्टोरीकल ग्ठीनिग्म पृष्ठ 11-१२. २. Vinaya Tests. S. B. E Vol. XIII. P.223. - - -

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