Book Title: Bhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 261
________________ -आर म. बुद्ध] [२४७ पाते हैं । ( Rockhill, Life of the Buddha P. 259.) इससे वर्णाश्रम 'सिद्धांतका बोध होता है कि ब्रह्मचर्याश्रमसे गृहस्थाश्रममें पहुंचकर पुत्रादिका सुख भोगकर जीव वानप्रस्थ और सन्यास आश्रमोंमें मोक्षमार्गपर लग जाता है । इस उल्लेखसे इस सिद्धान्तकी प्राचीनता स्पष्ट है । 'दिव्यावदान' के भी एक उल्लेखमें भगवान महावीरकी गणना' अन्य पांच मतप्रवर्तकों के साथ २ की गई है। तथापि अन्यत्र इसी ग्रन्थमें जैन मुनियों की नग्नावस्थापर आक्षेप किया गया है। यथाः 'कथम् स बुद्धिमान भवति पुरुषो व्यज्ञनावितः। लोकस्य पश्यतो योऽयम् ग्रांमे चर्ति नग्नकः ॥ यस्यायम् ईदृशो धर्मः पुरसताल लम्बते दशा । तस्य वै श्रवणौ राजा क्षुरप्रेरगावक्रिन्ततु ॥" __ और फिर इसी ग्रन्थमें म० बुद्धकी आत्मऋद्धि द्वारा निगन्या नातपुसके परास्त होनेकी शेखी मारी गई है । (दिव्यायदान १० १४३). . उपरान्त 'मिलिन्दपन्ह' में भी कतिपय जैन उल्लेख हमारे देखने आये हैं । यह बौद्धग्रन्थ ईसासे पूर्व दुसरी शताब्दिकी रचना है । प्रारंभमें ही जो उसमें यह कथानक दिया हुआ है कि पांचसौ - योंकाओं (यूनानियों) ने आकर राजा मिलिन्द अथवा मेनेन्डर ( Menander') से निगन्य नातपुत्त ( भगवाना 1. पृष्ट १४३.२. दिव्यावदाने पृष्ट १९ . the Questions... of Milinda, S. B. E. Vol. XXÀV., P. 8. .

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