Book Title: Bhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 267
________________ - और म० बुद्ध ] - [ २५३ वह समण गौतमकी भक्त थी किन्तु सेठीके लिए ऐसा करना सम्भव नही था, इसलिए उसने क्षमा याचना करके उन्हें विदा किया । इस घटना के उपरांत सेठी बहुमूल्य आसनपर बैठा सोनेके कटोरेसे मधुमिश्रित दूध पीरहा था और विशाखा पास में खड़ी पंखा झल रही थीं। उसी समय एक वौद्ध भिक्षु वहां आखड़ा हुआ । . किन्तु सेठीने उसकी ओर ध्यान भी नहीं दिया । यह देखकर विशाखाने उस थेर (भिक्षु) से कहा, "महाराज, अन्य घरको जाइए; मेरे श्वसुरजी अशुद्ध वासी पदार्थ ग्रहण कर रहे हैं ।" इसपर वह श्रेष्ठी बहुत नाराज हुआ। उसने उसी समय दूध पीना बंद करके नौकरोसे कहा कि विशाखाको मेरे घरसे निकाल बाहर करो । . इसपर विशाखा ने कहा कि मेरे अपराधकी भी तो परीक्षा कर लीजिए | सेठीने यह बात मान ली और उसके रिश्तेदारों को बुलाकर उनसे कहा कि जब मै दुग्धपान कर रहा था तब विशाखाने बौद्ध . भिक्षुसे कहा कि मै अशुद्ध वासी पदार्थ ग्रहण कर रहा हूं । विशाखाके रिश्तेदारोने इस बातकी हकीकत दर्याफ्त की । विशाखा ने कहा कि उसने यह बात कही ही नही । उसने केवल यही कहा था कि उसके श्वसुर अपने पूर्वभव के पुण्यका फल भोग रहा है । इसप्रकार विशाखाने अपने अपराधको निर्मूल प्रमाणित कर दिया । जब वह निरपराध ठहरी तब उसने अपने श्वसुरगृहसे चला जाना ही मुनासिब समझा, इसपर श्रेष्ठीने उससे क्षमा याचना की और घर में रहने के लिये ही अनुरोध किया । वह केवल एक शर्तपर रहनेको मजूर हुई कि मुझे बौद्ध गुरुओकी उपासना करनेकी आज्ञा मिल जानी चाहिए । श्रेष्ठीने यह शर्त मंजूर कर ली । दूसरे दिन उसने बुद्धको अपने

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