Book Title: Bhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 264
________________ २५०] [ भगवान महावीरअनहोनी है, वह सब वे जानते हैं। अगाडी इस बौद्ध कयामें लिखा है कि गरहदिनके अनुरोधसे श्रीगुप्तने जैनमुनियोंको आहारनिमित्त निमंत्रित किया और अपने घरमें दो गढे मिष्ठा आदिसे भरवाकर ढकवा दिये और जाहिरा ऐसा उत्सव किया कि मानो यह बड़े ठाठसे जैनमुनियों (Wanderers) को आहार देरहा है। नियत कालमें सब ही निर्यन्य साधु उसके यहां पहुंचे बतलाये हैं । उस श्रीगुप्तके कहनेके मुताबिक उनको अपना२ बरतन लेकर अलगर बैठ जाना और फिर मिष्ठासे भरे गढ़े में गिर जाना लिखा है।गरहदिनको इन समाचारोंसे बड़ा दुःख हुआ और रानासे कहकर उसने श्रीगुप्तको दण्डित कराया। आखिर गरहदिन्नने भी बुद्धको नीचा दिखानेके लिये उनको आमंत्रित किया और अपने घरमें एक गमें राख भरवाकर उसे कपड़ेसे ढकवा दिया । बौद्ध कहते हैं कि बुद्धने अपने ज्ञानबलसे गरहदिनकी यह कारस्तानी जान ली, परन्तु उनको 'अन्तर्दृष्टि दिलानेके अर्थ वे भिक्षुओं सहित आहाके लिए उसके यहां चले आये और अपने प्रभावसे भिक्षुओंसहित भरपेट आहार किया और सबको धर्मका उपदेश दिया। कौतूहलसे बहुतसी भीड़ वहां हो गई और बुद्धको इस प्रकार आनंदपूर्वक देखकर वे उन बुद्धको पूज्य दृष्टि से देखने लगे | बहुतेरे मनुष्योंको बौद्धधर्ममें विश्वास हुआ और वे उसके धर्मको सुनकर बड़े हर्षित हुये। श्रीगुप्त और गरहदिन अर्हत होगये ।"" ... बौडग्रन्थकी इस कथामें जैनमुनियोंको नीचा दिखानेका कटु भाव ओतप्रोत भरा दृष्टिगोचर' होरहा है । इस कथानकमें .. हिस्टारीकल ग्लीनिन्यस पृ० ०९-८१ ।

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