Book Title: Bandh Vihanam Tattha Pasatthi
Author(s): Veershekharvijay
Publisher: Bharatiya Prachya Tattva Prakashan Samiti
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गाथा ४७ ]
बंधविहाण सत्थी
[ ७
जम्मो सुहस्थिणोsहं, कुणिहिविहु १११ मिए वयं खगकरथणे । जुगपवरतं सरजिण २४५ - मिए दिवं भूणिहिसय२९१मिए ||४०|| (पच्छाज्जा)
अज्जसुहत्थिगुरु जा, हवीअ गच्छाहिवा च्च आयरिआ । सवे जुगपहाणा, पुत्रहरा वायणादाऊ ॥४१॥ ( पच्छाज्जा) सूरिमंतस्स जबकोडिओ, गच्छणामो जओ कोडिओ; णिग्गओ इक्खुगहणा जिणा, आइभिक्खागुवंसो जहा । लोअणाई भिव सुहत्थिणो, पट्टवत्तम्मि सोहीभ जे; सुट्टिअक्खो सुपडिबुद्धगो, ते गुरू दिन्तु भव्वाण सं ॥ ४२ ॥ (वल्लकी) वीराग्गजुगकर २४३ मिए ६ सुट्टिअसूरिणो जणी दिक्खा । गइणखत्ते २७४ सूरी, कुणिहिक रे२९१ स खगवहि विस्से ३३६ ॥ ||४३|| (पच्छागीई) कुमरगिरिम्मि मुणीणं, तइआगमवायणा उ. सिं काले । अगहस्स काराविआ कलिंगणित्र भिक्खुराएणं ॥ ४४ ॥ (अंतविपुलाजहणचवलागीई) सिरिगुणसुन्दरसूरी, एगारसमो तया जुगपद्दाणो । वीसिवाऽद्दे जिणवय-गुणथणसंखेऽस्स भासि जणी ||४५||
( पच्छ । ज्जा)
दुज्झायगुणमिए, स दिक्खिओ भूमिगहभुजपमाणे । छेसी जुगप्पहाणो, सग्गमिओ विसयभुइकाले ॥ ४६ ॥ (पच्छाज्जा)
प्रज्ज महागिरिसीसा, बहुलबलिसहा उ वायणायरिआ । आसि जमलभाऊ तो, वायगवरसाइसूरीसो ॥४७॥ ( पच्छाज्जा)

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