Book Title: Avchetan Man Se Sampark
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 5
________________ प्रस्तुति मन स्वयं चेतन नहीं है, पर वह चेतन का पूर्ण प्रतिनिधित्व कर रहा है। मन का कार्य प्रत्यक्ष है । चित्त और मन में विभाजन की रेखा स्पष्ट है । चित्त चैतन्यधर्मा है और मन चैतन्यधर्मा नहीं है। फिर भी काम चलाने के लिए बहुत सारे दार्शनिकों, चिन्तकों और मनोविदों ने चित्त को गौण कर मन को ही सर्वव्यापी बना दिया। वह तीन स्तरों पर कार्य करता हैअचेतन, अवचेतन और चेतन । यह मनोविज्ञान की भाषा है। प्रेक्षाध्यान की भाषा में अचेतन को कर्म शरीर के साथ प्रवृत्त चेतना, अवचेतन को तेजस शरीर के साथ प्रवृत्त चेतना और चेतन को औदारिक या स्थूल शरीर के साथ प्रवृत्त चेतना कहा जा सकता है । हमारा चेतना या जागृत मन ही सब कुछ नहीं है। उसकी पृष्ठभूमि में चेतना के अनेक स्तर कार्यरत हैं। उन्हें समझे बिना जीवन की व्याख्या नहीं की जा सकती और आचरण, व्यवहार तथा सम्बन्धों की व्याख्या भी नहीं की जा सकती । वर्तमान समस्या के सन्दर्भ में तीन ज्वलंत प्रश्न उभर कर सामने आ रहे हैं। उन्हें समाहित करना युग की अनिवार्यता है । मानसिक अशांति क्यों ? वैज्ञानिक विकास के साथ सुख-सुविधा की प्रचुर सामग्री उपलब्ध होने पर भी हिंसा की उग्रता क्यों ? नैतिक चेतना का अभाव क्यों ? इनके समाधान के लिए बौद्धिक और भावनात्मक विकास का सन्तुलन, विधायक दृष्टिकोण और सम्बन्धों का नया क्षितिज-यह मार्ग खोजना होगा और उसके लिए अवचेतन और अचेतन मन से सम्बन्ध स्थापित करना होगा। प्रस्तुत पुस्तक में अचेतन और चेतनमन के कुछ सम्पर्क-सूत्र उपलब्ध हैं । वे पथ की खोज में हमारा सहयोग कर सकते हैं। आचार्य श्री तुलसी के आशीर्वाद ने अध्यात्म के नये आयाम विकसित करने में गति दी है। मुनि दुलहराजजी ने सहज संभूत विचार-बिन्दुओं को सम्पादित कर ग्रन्थ का आकार दिया है। मुनि धनंजय कुमार ने शिविर के प्रवचनों को व्यवस्थित कर ग्रन्थाकार होने में सहयोग दिया है। 'तुलसी अध्यात्म नीडम् के निदेशक धर्मानन्द जी ने उन्हें प्रकाशित कर पाठकों के सामने प्रस्तुत किया है। पाठक प्रेक्षाध्यान के प्रति स्वयं प्रेरित हैं और उससे लाभान्वित होते हैं, ऐसा मुझे ज्ञात है। मनुष्य की अध्यात्म चेतना जागे, बस यही है कथ्य और यही है हमारा गंतव्य । लाडनूं -युवाचार्य महाप्रज्ञ जैन विश्व भारती, १७-४-८४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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