Book Title: Anusandhan 2007 12 SrNo 42
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 17
________________ अनुसन्धान ४२ जायाए धम्मगुणपडिवत्तिसद्धाए भाविज्जा एएसिं सरूप( वं) पयइसुंदरत्तं अणुग्ग(गा )मित्तं पयो( रो)वयारित्तं परमत्थहेउत्तं तहा दुरणुचरत्तं भंगे दारुणत्तं महामोहजणगत्तं भूओ दुल्लहत्तंति । एवं जहासत्ति(त्ती )ए उचियविहाणेणं अच्चंतभावसारं पडिवज्जिज्जा । ____धर्मगुण-प्रतिपत्ति श्रद्धा, तार पछी तथाविध कर्म-क्षयोपशमें करी भावथी भावीयें ए धर्मगुणोनु स्वरूप, जीव संक्लेश-विशुद्धियें, प्रकृतई सुंदरपणुं, भवांतर वासनानुगमें करी अनुगामिपणुं,पीडादि निवृत्तियें परोपकारिपj, परम्परायें मोक्षसाधनपणा माटें परमार्थ हेतुपणुं, सदैवानस्या(भ्या)स माटें दुखें आचरवामां आवे ते दुरनुचर दुरनुचरभाव ते दुरचरपणुं, भगवंतनी आज्ञाना खंडवाथी भंग थई दारुणपा(प)j, धर्मदूषकपणे करी महामोहजनन शक्तिमंतपणुं, भूयो दुर्लभत्वं क० विपक्षानुबंधना जोरथी पुनःप्राप्ति-दुर्लभपणुं, एवं-उक्त प्रकारे शक्तिनें अनुरूप, उचित विधानें-शास्त्रोक्तविधियें हानि-आधिक्य परिहरी, अत्यंतभावें सार-मोटें प्रणिधानइं बलें पडिवजीयें धर्मगुणोने, राभसिकवृत्तिये नही वर्जीजीयें, राभसिक प्रवृत्तिनुं विपाकें दारुणपणुं छै, माटें धर्मगुणमा प्रवृत्ति उपयोगयुक्त ज हीनता अधिकता बें दोष वर्जीने करवी ।। . तं जहा थूलगपाणाइवायविरमणं थूलगमुसावायविरमणं थूलगअदत्तादाणविरमणं थूलगमेहुणविरमणं थूलगपरिग्गहवेरमणमिच्चाइ पडिवज्जिऊण पालणे जइज्जा । ते जिम-स्थूल प्राणातिपात, विरमण, स्थूल मृषावादनुं विरमण, स्थूल अदत्तादान, विरमण,स्थूल परिग्रह (मैथुन)नुं विरमण, स्थूल परिग्रहनुं विरमण इत्यादि; आदि शब्दथी दिग्भू(व्र)तादि उत्तरगुण ग्रहीयें, अंगीकार करीने पालवाने विषे उद्यम करीयें । प्रथम उपन्यास प्राणातिपात विरमणादिकनो ते प्राप्ति एहोनी इंम ज छ । सयाणागाहगे सिआ सयाणाभावगे सिआ सयाणापरितंते सिआ। आणा हि मोहविसपरममंतो, जलं रोसा( दोसाइ)जलणस्स, कम्मवाहीतिगिच्छासत्थं, कप्पपायवो सिवफलस्स । अध्ययनश्रवणें करी सदा आज्ञानो ग्रहनार हुं थाउं, अनुप्रेक्षाथी साथें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88