Book Title: Anusandhan 2007 12 SrNo 42
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 85
________________ ७८ अनुसन्धान ४२ वेधशाला आदि साधनो हशे तेनो उपयोग के प्रयोग करवानुं पण जे लोकोने माटे सदंतर निषिद्ध के वर्ण्य हतुं, तेवे समये, तेवा निर्ग्रन्थ-अकिंचन जैन साधुओए आखीये सृष्टिनो ताग काढीने तेनुं सूक्ष्म-जटिल छतां अत्यन्त स्पष्ट अने बुद्धिगम्य गणित आप्युं, तेना आधारे समग्र सृष्टिना भूगोलीय-खगोलीय तमाम पिण्डो तथा स्थानोनी व्यवस्था दर्शावी आपी, आ कांई साधारण के अवैज्ञानिक घटना तो नथी ज. आजनुं विज्ञान आ जूनी वातोने भले हम्बग गणे, पण आजनुं आ मान्य विज्ञान पण आवती कालना विकसित संशोधन पछी हम्बग नहिज गणाय तेवू नथी, ए पण समजी लेवू ज रह्यं. अस्तु. आ चित्रनी फोटोकोपी करी आपवा बदल मांडवीना खरतरगच्छ संघना श्रीहरनीशभाई वगेरे कार्यवाहकोनो आभारी छु. - खुलासो अंक ४१मां प्रकाशित 'स्याद्वादकलिका' नामे कृति आ पूर्वे एकाधिक स्थले प्रकाशित थई चुकी होवानुं जाणवामां आव्युं छे. - - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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