Book Title: Anusandhan 2007 12 SrNo 42
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 77
________________ ७० अनुसन्धान ४२ उपसंहार वाल्मिकी रामायण में उपस्थित असम्भाव्य घटनायें तथा अद्भुत और अतार्किक अंशों को दूर करके तार्किक आधार पर उसकी प्रतिष्ठा करना यही विमलसूरिकृत जैन रामायण का उद्दिष्ट है । इसी उद्दिष्ट का अनुसरण करके विमलसूरि ने अञ्जना की कथा प्रस्तुत की है । विमलसूरि के अञ्जनापवनञ्जयवृत्तान्त की विशेषताएँ इस प्रकार हैं* किसी अद्भुत वर या शाप का आधार न लेना । * कथानक प्रवाहित होने के लिए कृत्रिमता का आधार न लेकर मानवीय स्वभाव के विशेषों का उपयोजन करना । सती अञ्जना का चरित्र निष्कलङ्कता से प्रस्तुत करना । * निरपराध अञ्जना के दुःखों का कर्मसिद्धान्त के आधार से स्पष्टीकरण देना । * स्त्रियों के प्रति मानवीय तथा सहृदय दृष्टिकोण अपनाना । * प्रसंगोपात्त सामाजिक तथ्यों पर प्रकाश डालना । उपर्युक्त बातों का आधार लेकर विमलसूरि ने वाल्मीकि द्वारा प्रस्तुत संक्षिप्त एवं त्रुटित, अञ्जनाकथा को एक परिपूर्ण उपकथानक के रूप में प्रस्तुत किया है । सन्दर्भ ग्रन्थ १. पउमचरियं, विमलसूरि, प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी, अहमदाबाद २. श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्, गीताप्रेस, गोरखपुर ३. श्रीरामायण महाकाव्य, किष्किन्धा-काण्ड, पं. श्रीपाद दामोदर सातवलेकर पारडी (जि. सूरत), १९५२ ४. भारतीय संस्कृति-कोश Research Assistant, Sanmati-Teerth, Research Institute of Prakrit & Jainology, Recognised by Pune University, Firodiya Hostel, BMCC Road, Pune-4. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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