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अनुसन्धान ४२
उपसंहार
वाल्मिकी रामायण में उपस्थित असम्भाव्य घटनायें तथा अद्भुत और अतार्किक अंशों को दूर करके तार्किक आधार पर उसकी प्रतिष्ठा करना यही विमलसूरिकृत जैन रामायण का उद्दिष्ट है । इसी उद्दिष्ट का अनुसरण करके विमलसूरि ने अञ्जना की कथा प्रस्तुत की है ।
विमलसूरि के अञ्जनापवनञ्जयवृत्तान्त की विशेषताएँ इस प्रकार हैं* किसी अद्भुत वर या शाप का आधार न लेना । * कथानक प्रवाहित होने के लिए कृत्रिमता का आधार न लेकर मानवीय
स्वभाव के विशेषों का उपयोजन करना ।
सती अञ्जना का चरित्र निष्कलङ्कता से प्रस्तुत करना । * निरपराध अञ्जना के दुःखों का कर्मसिद्धान्त के आधार से स्पष्टीकरण
देना । * स्त्रियों के प्रति मानवीय तथा सहृदय दृष्टिकोण अपनाना । * प्रसंगोपात्त सामाजिक तथ्यों पर प्रकाश डालना ।
उपर्युक्त बातों का आधार लेकर विमलसूरि ने वाल्मीकि द्वारा प्रस्तुत संक्षिप्त एवं त्रुटित, अञ्जनाकथा को एक परिपूर्ण उपकथानक के रूप में प्रस्तुत किया है ।
सन्दर्भ ग्रन्थ १. पउमचरियं, विमलसूरि, प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी, अहमदाबाद २. श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्, गीताप्रेस, गोरखपुर ३. श्रीरामायण महाकाव्य, किष्किन्धा-काण्ड, पं. श्रीपाद दामोदर सातवलेकर पारडी
(जि. सूरत), १९५२ ४. भारतीय संस्कृति-कोश
Research Assistant,
Sanmati-Teerth, Research Institute of Prakrit & Jainology,
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