Book Title: Anusandhan 2007 12 SrNo 42
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 51
________________ ४४ अनुसन्धान ४२ आचार्य पद दिलवाया था । अहमदाबाद के मेघमन्त्री ने धर्महंस और इन्द्रहंस को वाचक पद, पालनपुर निवासी जीवा ने आगममण्डन को वाचक पद और ईडर के भाण राजा के मन्त्री कोठारी सायर ने गुणसोम को, संघपति धन्ना ने अनन्तहंस को एवं आशापल्ली के झूठा मौड़ा ने हंसनन्दन को वाचक पद दिलवाया था । श्री देसाई लिखते हैं कि इस ईडर में तीन साधुओं को आचार्य पद, छ: को वाचक पद और आठ को प्रवर्तिनी पद पृथक्-पृथक् रूप से प्राप्त हआ था । अर्थात उस समय ईडर धर्म की नगरी बनी हई थी । पैरा नं. ७५८ में लिखा है :- अनन्तहंसगणि ने १५७१ में दस दृष्टान्त चरित्र की रचना की थी, और पैरा नं. ७३८ में लिखा है कि संवत् १५७० में अनन्तहंस ने ईडरगढ़ चैत्य का वर्णन करते हुए ईला प्राकार चैत्य परिपाटी लिखी थी । इस प्रकार इस कृति से तीन महत्त्वपूर्ण तथ्य उभरकर आते हैं :१. अनन्तहंसगणि श्री जिनमाणिक्यसूरि के शिष्य थे, २. श्री लक्ष्मीसागरसूरि ने अनन्तहंस को उपाध्याय पद प्रदान किया था और ३. सुमतिसाधुसूरि के शिष्य कनकमाणिक्यगणि ने इस स्वाध्याय की रचना की थी। तपागच्छ पट्टावली पृष्ठ ६७ के अनुसार श्री जिनमाणिक्यसूरि, श्री लक्ष्मीसागरसूरि के शिष्य थे । श्री लक्ष्मीसागरसूरि ५३वें पट्टधर थे । इनका जन्म १४६४, दीक्षा १४७७, पन्यास पद १४९६, वाचकपद १५०१, आचार्य पद १५०८, गच्छनायक पद १५१७ में प्राप्त हुआ था और सम्भवतः १५४१ तक विद्यमान रहें । सुमतिसाधुसूरि ५४वें पट्टधर थे और इनको आचार्य पद श्री लक्ष्मीसागरसूरि ने प्रदान किया था । इनका जन्म संवत् १४९४, दीक्षा संवत् १५११, आचार्य पद १५१८ और स्वर्गवास संवत् १५५१ में हुआ था। विशेष कोई उल्लेख प्राप्त नहीं है । यह निश्चित है कि अनन्तहंसगणि को उपाध्याय पद विक्रम संवत् १५२५ से १५३५ के मध्य में प्राप्त हो चुका था । इनके उपदेश से १५२९ में लिखित शिलोपदेश माला की प्रति पाटण के भण्डार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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