Book Title: Anusandhan 2007 12 SrNo 42
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 50
________________ डिसेम्बर २००७ समान नाम ग्रहण करने से नवनिधि प्राप्त होती है । इनके दर्शन से परमानन्द, सुख- सौभाग्य और सत्कार की प्राप्ति होती है । इनके गुण मेरु पर्वत के समान हैं और वचनामृत सोलह कलापूर्ण चन्द्रमाके समान हैं । स्वरूपवान हैं । ग्यारह अङ्ग को धारण करने वाले हैं । आगम, छन्द, पुराण के जानकार हैं । तपागच्छ को दीपित करने वाले हैं । कामदेव को जीतने वाले हैं, और - मोह का निराकरण करने वाले हैं । पूर्व ऋषियों के समान अनुपम आचार और संयम को धारण करने वाले हैं। जिस प्रकार आषाढ़ की घनघोर वर्षा से पृथ्वी प्रमुदित होती है, उसी प्रकार इनकी सरस वाणी रूपी झिरमिर से सब लोग प्रमुदित होते हैं । छट्ठे पद्य से कवि ऐतिहासिक घटना की ओर इंगित करता है । मान ईडर नगर के अधिपति महाराजा भाण अच्छे कवि थे और कवियों का सत्कार सम्मान करते थे । सातवें - आठवें पद्य में श्री जिनमाणिक्यसूरि के तप - तेज, संयम का वर्णन करते हुए लिखा है कि श्री अनन्तहंसगणि श्री जिनमाणिक्यसूरि के शिष्य थे। नवमें पद्य में तपागच्छाधिपति श्री लक्ष्मीसागरसूरि ने अनन्तहंसगणि को उपाध्याय पद प्रदान किया । दसवें पद्य में गच्छपति श्री सुमतिसाधुसूरि जो कि आगमों के ज्ञाता जम्बूस्वामी और वज्रस्वामी के समान थे, उन्हीं के शिष्य ने इस स्वाध्याय की रचना की है । अन्त में कवि कहता है कि जब तक सातों समुद्र, चन्द्र, सूर्य, मेरु, धरणी, मणिधारक सहस्रफणा सर्पराज विद्यमान हैं, तब तक तपागच्छ के प्रवर यतीश्वर श्री अनन्तहंस संघ का मङ्गल करें । पद्य छ: के प्रारम्भ में राजा वल्लभ भाषा उल्लेख है । सम्भवतः यह किसी देशी या राग-रागिणी का नाम होना चाहिए । श्री मोहनलाल दलीचन्द्र देसाई लिखित 'जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास' पैरा नं. ७२४ में लिखा है :- भाण राजा के समय में ईडर दुर्ग पर सोनीश्वर और पता ने उन्नत प्रासाद बनाकर अनेक बिम्बों के साथ अजितनाथ भगवान की प्रतिष्ठा विक्रम संवत् १५३३ में करवाई थी । इसी भाण राजा के राज्यकाल में कोठारी श्रीपाल ने सुमतिसाधु को आचार्य पद दिलवाया था । अहमदाबाद निवासी हरिश्चन्द्र ने राजप्रिय और इन्द्रनन्दी को Jain Education International ४३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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