Book Title: Anusandhan 2007 12 SrNo 42
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 34
________________ डिसेम्बर २००७ २७ विओगाइवेअणे, समुवलब्भ चरणारोग्गं पवड्डमाणसुहभावे, तल्लाभनिव्वुईए तप्पडिबंधविसेसओ परिसहोवसग्गभावेवि तस्स( तत्त )संवेअणाओ कुसलासयवुड्डीओ थिरासयत्तेण धम्मोवओगाओ सया थिमिए तेउल्लेसाए वड्डइ, गुरुं च बहु मन्नइ जहोचिअं असंगपडिवत्ति(त्ती )ए, निसग्गपवित्त(त्ति )भावेण एसा गुरुई विआहिआ भावसारा विसेसओ भगवंतबहुमाणेण । जो मं पडिमन्नइ सो गुरुं ति तदाणा । अन्नहा किरिआ अकिरिआ कुलडानारीकिरिआसमा, गरहिआ तत्तवे( ई )णं अफलजोगओ । विसण( पण )तित्तीफलमित्थ नायं । आवटे खु तप्फलं असुहाणुबंध( धे)। ए सम्यग् ज्ञानथी बहुमाने माने इंम, कर्मव्याधिई गीहीत प्राणी,अनुभवी छे जन्मजरामरणादिकनी वेदना जेणे एहवो, विशेष ज्ञाता कहतां जांण दुखरूपें जन्मादिक वेदनानो, तिहां ज आसक्तादिकें विपर्यस्त नही उदासीन परमार्थथी जन्मादिवेदनाथी, सुगुरुने वचनें अनुष्टानादिकई करीनइं सुगुरु प्रतें अनें कर्मव्याधि प्रति जांणीनें, तृतीय सूत्रमा कडं जे विधानते विधाने पडिवज्यौ छतौ शुभ छै क्रिया जेहमां एहवी प्रवज्या प्रति, निरुद्ध छई प्रमाद- आचरण जेणे यदृच्छाई करी, संयमने अनुगुणपणे अर(असार)शुद्ध भोजननो भोगी, ए प्रकारें मुकातो कर्मरूप व्याधिई, तिम मोहनई नाशें करी वलमान छे इष्टवियोगादिक वेदना जेहनइं एहवो, सम्यग् पामीनइं सदरूप तें पामवें चरणधर्मरूप आरोग्यनें प्रकर्षे वधतो छ शुभ चरणारोग्यनो भाव जेहनई एहवो, चरणरूप आरोग्यना लाभनी निष्पत्तिइं, चरणरूप आरोग्यनो जे प्रतिबंध तेह बहुतर कर्म-व्याधिना विकारने नाशें तेहना विशेषथी, स्वाभाविक कारणथी क्षुदादि-परीषहे दिव्यादि उपसर्ग-तेहोनें योगें पण, सम्यग् ज्ञानथी, क्षयोपशमिकभावलक्षण कुसलाशयनी वृद्धिई, स्थिरचित्तपणे करी कर्तव्यताना बोधथी, सदा भावद्वंद्वे रहित प्रशांत, शुभ प्रभावरूप तेजोलेश्यायें वृद्धिनें अनुभवें,भीद(भव)वैद्यनें वली बहुमानें मानइं, उचितपणें-यथौचित्येन स्नेहरहित भावनी प्रतिपत्तइं, सांसिद्धिक प्रवृत्तिभावें करीनइं असंगप्रतिपत्ती गुर्वी ते मोटी वखाणी छे भगवंतें-व्याख्याता, भावें सारऔदइकभावनें विरहें विसेषथी असंगप्रतिपत्ति, इहां युक्त्यंतर कहे छे - अचिंताचिंतामणिकल्प तीर्थंकरथी प्रतिबंधई, जे मुझनें भावथी प्रतिमन्न्य(न्य)त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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