Book Title: Anusandhan 2007 12 SrNo 42
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 22
________________ डिसेम्बर २००७ परिणामदारुणाः । महाभयजनन मृत्यु छै सर्वना अभावनो [कर्ता]अदृस्यस्वभावपणा माटें अविज्ञात छै आगमन जेनुं एहवो, करनार छै तत्साध्यार्थक्रियाना अभाव माटइं, स्वजनादिबलें अनिवारणीय छै-निवारवा योग्य न - नही ते अनिवारणीय, अनेक योनि सावें (थे) करी पुनः पुनः वारंवार अनुबंधी छइ, धम्मो कहतां धर्म व्याधि समान जे ए मृत्यु तेहy औषध छई, एकांतविशुद्ध निवृत्ति रूप छे, महापुरष ये तीर्थकरादिक तेहुणे सेवित्त छइं, सर्वनें हितकारी छई, मैत्र्यादिरूपपणा माटई निरतिचार छे, यथागृहीत-परिपालने करी परिमानंदनो हेतु छइं । नमो इमस्स धम्मस्स । नमो एअधम्मप्पगासगाणं । नमो एअधम्मपालगाणं। नमो एअधम्मपरूवगाणं । नमो एअधम्मपवज्जगाणं । नमस्कार हो एतस्मै-एहनें अनंतरोदितरूपधर्मनइं नमः । ए धर्मना प्रकाशक अरिहंतो. नमस्कार हो । ए धर्मना पालनार यतीओनें नमस्कार हो । ए धर्मना प्ररूपक यतीओनई नमस्कार हो । ए धर्मना पडिवजनार श्रावकादिक गुणिजीवोनइं । इच्छामि अहमिणं धम्म पडिवज्जित्तए सम्म मणवयणकायजोगेहिं । होउ ममेअं कल्लाणं परमकल्लाणाणं जिणाणमणुभावओ।। इच्छु छु हुं एहनें धर्मनई प्रतिपत्तिविषय करवाने । सम्यक्, अनेन तु संपूर्णप्रतिपत्तिरूपं प्रणिधिविशेषमाह-मनोजोग-वचनजोग-कायजोगें करीनें । हो मुझनें ए कल्याण-अधिकृत धर्मप्रतिपत्तिरूप परम छे कल्याण जेहुनें एहवा तीर्थंकरोना महिमाथी-तीर्थकरानुग्रहइ । __ सुप्पणिहाणमेवं चिंतिज्जा पुणो पुणो। ए[य] धम्मजुत्ताणमववायकारी सिआ । पहाणं मोहच्छेअणमेअं । एवं विसुज्ज( ज्झ )माणे भावणाए कम्मापगमेणं उवेइ एअस्स जुग्गयं । तहा संसारविरत्ते संविग्गो भवइ अममे अपरोवतावी विसुद्धे विसुद्धमाणभावेत्ति ।। ___ शुभ प्रणिधांन इम चितवई वारंवार । ए धर्मयुक्त यतीओनो अवपातकारी थाउं-आज्ञाकारीति भाव । प्रधान-श्रेष्ठः मोहनुं च्छेदन तदाज्ञाकारीपणुं, तन्मोहच्छे(द)ने योगनिषा(निश्रा?)गतयेति हृदयं । इम कुशलाभ्यासें विशुध्यमान ए धर्मनो अभ्यासी जा(जी)व उक्तरूपभावनायें कर्मनो अपगम जे नाश तद्रूप हेतुइं करीनें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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