Book Title: Anusandhan 2006 06 SrNo 36
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 7
________________ 2 अनुसन्धान ३६ गाथामा पोते जिन - स्तुति आरंभता होवानो निर्देश तेओ आपे छे. त्यार पछी १२ थी १५ ए गाथाओमां अतीतमां थयेल २४ तीर्थंकरोनां नामो, १६-१८मां वर्तमानकालमां थयेल २४ तीर्थंकरनां नामो तथा १९ - २२मां भविष्यमां थनारा २४ तीर्थंकरोनां नामो दर्शावीने तेमनी स्तुति कविए करी छे. जैन शास्त्रो अनुसार, मनुष्यलोकमां अने तदुपरांत देवलोकमां घणी बधी जिनप्रतिमाओ 'शाश्वत' होय छे. ते चैत्यो तथा ते प्रतिमाओ सदाकाळ 'होय' ज छे. २२-२६ गाथाओमां पृथ्वी परनां विभिन्न स्थानोमा रहेल ते शाश्वत चैत्य / प्रतिमाओनुं स्मरण थयुं छे; अने २७ - ३२ गाथाओमां चार प्रकारना देवलोकमांनां चैत्यो / प्रतिमाओनुं विवरण थयुं छे. ३३मी गाथामां कवि चोखवट करे छेके आ सर्व शाश्वत प्रतिमाओ 'ऋषभ, चन्द्रानन, वर्धमान, वारिषेण' आ चार नामोथी ज ओळखाय छे. वर्तमान समयमां, भरतखण्ड (क्षेत्र) ना तेमज अन्य क्षेत्रोना अमुक विभागमां वर्तता तीर्थंकरोने 'विहरमाण जिन' तरीके ओळखवामां आवे छे. वर्तमाने तेवा २० जिन छे. तेमनुं नाम वर्णन ३४-३९ गाथाओमां थयुं छे. ४१मा पद्यमां जैनोमां मान्य ७ प्रमुख तीर्थोनो नामनिर्देश करीने पछीथी ते पैकी एकेक तीर्थनुं वर्णन कवि विस्तारे छे. ४२-४५मां अष्टापदतीर्थनुं, ४६-४८मां उज्जयन्ततीर्थनुं, ४९-५५मां गजाग्रपद तीर्थनुं, ५६-५८ मां तक्षशिलागत धर्मचक्रतीर्थनुं, ५९-६३मां पार्श्वनाथना अहिछत्रातीर्थनं ६४-६६मां वज्रस्वामीना रथावर्त तथा कुंजरावर्त तीर्थनुं, अने ६७-६८मां सुंसुमारपुरगत चमरोत्पात तीर्थनुं वर्णन थयुं छे. आ पछी अन्य विविध जिनतीर्थोनुं वर्णन चालु थाय छे. ७०-७१मां समेतशिखरगिरिनी स्तवना छे. ७३ ७५मां विमलगिरि - अपरनाम - शत्रुंजयतीर्थनी स्तुति छे. आमां ७४ मी गाथामां आवता 'कहमन्नह तेवीसं जिणपयजुयलाण पडिबिंबा ?' ए वाक्यथी एक ऐतिहासिक तथ्य ए जडे छे के, कर्ताना समयमां शत्रुंजय तीर्थ परना जिनचैत्यमा २३ तीर्थंकरो (नेमिनाथ सिवायना) नां चरणचिह्नो (पादुका) कोरेलो कोई पादुकापट्ट होवो जोईए. आ तीर्थ पर २३ जिन आवेला अने १ मात्र नेमिनाथ नहि आवेला, एवी जैन संघनी परम्परागत मान्यतानो आवा पट्ट द्वारा पडघो पडतो होवानुं कर्ता सूचववा मागे छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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