Book Title: Anusandhan 2006 06 SrNo 36
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसन्धान ३६
उच्छु-तिल्लजंत-निल्लंछण-दवदाण-सरदहतलागाणं । सोसं मज्जाराईपोसं वज्जेमि असईए ॥४२॥ चउविहमणत्थदंडं अवज्झाण-पमाय-हिंस-अप्पिणणं । पाउवएसं वज्जे अवज्झाणं अट्ट-रुद्दाणि ॥४३।। अजरामरत्त-विज्जाहरिंदकीलाई देसभंगाई । अच्चंतमसंबद्धं म(मु) हुत्तपरओ न चिंतेमि ॥४४|| किंची जूयं साणाइजोहणं डिभरूयकीलाई । जलहिंडोलयलीलाइयं च न करे पमायमहं ॥४५॥ दक्खिन्न-भयाभावे खग्गाई हिंसए न अप्पेमि । थूलं पाउवएसं वज्जे गोणाइदमणाई ॥४६।। समइय तह पडिकमणे निरुओ सामग्गिसन्निओ काहं । वरिसंमि सयं एगं मासे सज्झायपंचसए ॥४७॥ अट्ठमि-चउदसि-पुत्रिम-अमावसा-पज्जुसवण-चउमासे । जिणपूया गुरुनमणं तवोविसेसं करिस्सामि ॥४८॥ अन्हाणं बंभवयं विसेसवावारजयणमवि काहं । देसावगासियवए दिवसे दस जोअणा गच्छे ॥४९।। पइदिवसं वावारे वज्जे पुढवि-जल-वाउ-वणकाए । चउरो चउरो पहरा तेउक्कायंमि पहरदुगं ॥५०॥ रयणीपोसह चउरो काहं सामग्गिसत्तिओ वरिसे । साहुसइ संविभागा चउरो एसणीयभत्तेणं ॥५१॥ सइ विभवे धम्मवए दम्मदुर्ग देमि हं सुखेत्तेसु । तिहिवीसरणे नियमो पुणो करिस्सामि बीयदिणे ॥५२॥ जइ कहवि कसायवसा भंगो पुव्वोत्त होज्ज नियमेसु । सज्झाय पंच उ सए एक्कासणयं च काहामि ॥५४॥ जत्थ विसिट्ठो नियमो न इ लिहिओ सोवि एगतिविहेणं । नेउ(ओ) दुवालसवए धरेमि सत्तीए जाजीवं ॥५५।। मुत्तुं रायभिओगं गणाभिओगं बलाभिओगं च । देवाभिओग-गुरुनिग्गहं च तह वित्तिकंतारं ॥५६॥
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