Book Title: Anusandhan 2006 06 SrNo 36
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 66
________________ June-2006 मध्यकालीन पद्यरचनाओ पर विवेचन करवा इच्छनार पासे, मध्यकालना कविओ विषे, तेमनी भाषा विषे, तेमनी निरूपणरीति विषे, जे ते कविना समयमा चालता भक्ति, अध्यात्म तथा काव्यप्रकारोना प्रवाहो विषे, सामान्य जाणकारी होवी अनिवार्यपणे जरूरी छे. तेमांय भाषाना शब्दना प्रयोगो विषे तो थोडीक जाणकारी होवी ज जोईए. आटली सामान्य भूमिका विना कोई कलम उपाडे, तो ते दुःसाहस ज बनी रहे. आ (४९मुं) पद ए प्रेमलक्षणा भक्तिपरक पद छे. एमां कवि प्रियतमना विरहमां व्याकुळ एवी प्रियतमाना रूपे उपस्थित थया छे, अने पोतानी विरहवेदनाने वाचा आपी रह्या छे. कवि पोकारे छे के 'मारा कंचनवरणा नाथ साथै कोई मारो मेळाप करावो ने !' 61 आ आर्तनाद के आजीजीना अनुसन्धानमां कविरूप प्रियतमा पोतानी विरहाकुळ स्थितिनुं बयान आगळ वधारतां आ कडीमां कहे छे के : "कौन सयन जाने पर मन की, वेदन विरह अथाह थर थर धुजै देहडी मारी, जिम वानर भर - माह'"... कवि कहे छे के - एवो कोण सयन - स्वजन / सज्जन होय / हशे के जे पर एटले कोईकना - बीजाना मननी अथाग एवी विरहवेदनानो ताग पामी शके ? (बीजी रीते, एवो कोई सज्जन अहीं हशे के जे कोईना मननी विरहवेदनाने तागी शके ?) प्रियतम ! मारी काया ( तुज विरहव्यथाजन्य व्याकुलतामां) थर थर धूजी रही छे ! (कोनी जेम ? तो ) जेम माह (माघ) मासनी कडकडती ठंडीमां वानरनी काया थथरे तेनी जेम ! (प्रस्तुत पुस्तकमां विवेचनकारे भरमाहनो अर्थ वळी 'भरमायेल' एवो कर्यो छे !) Jain Education International आटलो अर्थ उघडे पछी योगीराज उपर तान्त्रिकोना मारणादिप्रयोगोनी कल्पना तथा तेना प्रत्याघातरूपे तेमणे आ शब्दो गाया होवानी कल्पना मिथ्या ज जणाय. चिन्ता एटली ज थाय के आ ग्रन्थमां आवुं तो घणुं बधुं हशे, अने For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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