Book Title: Anusandhan 2006 06 SrNo 36
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 51
________________ अनुसन्धान ३६ शा माटे ? अन्तिम कही शकाय तेवां पगलां भरवानुं शा माटे ? आथी तो अर्बु थशे के मूळे जैन होय तेवा विद्वान के संशोधक तो आपणी पासे छे नहि. नवा तैयार थाय तेवो अेक पण संयोग आपणे रहेवा पण दीधो नथी ! अने जे बे-त्रण जणा छे, तेमनो लाभ पण, आपणी आवी वृत्ति-प्रवृत्तिने कारणे, आपणने मळतो अटकी जशे. खरेखर तो आपणे आवा शोधक विद्वानोनो भरपूर लाभ उठाववो जोइओ. ओ माटे ओमनी बधी वातो साथे सहमत थर्बु के होवू जरूरी नथी होतुं. आपणी श्रद्धाने अकबंध राखीने पण तेमना दृष्टिकोण तथा विचारो समजी शकाय छे. तेमणे गवेषेलां प्रमाणो जाणी शकाय छे, अने तेनी साधक-बाधक चर्चा पण थई शके छे. आq करी शकाय तो आपणे घणा घणा समृद्ध बनी शकीओ अमां शंका नथी. बाकी डॉ. ढांकी विषे अटलुं ज कहुं के दिगम्बरो द्वारा थता अनेक शास्त्रीय तथा तात्त्विक आक्षेपोनो प्रमाणभूत तथा अधिकारपूर्वक प्रतिवाद आपनार - आपी शकनार, तथा ते लोकोनां खोटां संशोधनो तथा अर्थघटनोनां मर्मस्थानोने पकडी पाडीने तेना तर्कपूत, शास्त्रसिद्ध तेमज इतिहाससिद्ध प्रत्युत्तर आपनार जो कोइ श्वेताम्बर विद्वान आपणी पासे होय तो ते एक मात्र डॉ. मधुसूदन ढांकी छे. आवा विद्वानने गुमाववा- आपणने पालवे तेम नथी, ओ वात मात्र कोई सुज्ञ तथा विवेकी व्यक्ति ज समजी शके तेम छे. हा, तमारी पासे परम्परानो, आगमादि पंचांगीनो, तथा अन्यान्य शक्य तेटली अधिक विद्याशाखाओनो सुदृढ अभ्यास होय तो, तमे तेना आधारेप्रमाणपूर्वक, डो. ढांकीओ करेलां जे पण विधानो सामे तमने वांधो होय, तेनुं खण्डन के तेनो प्रतिवाद अवश्य लखी शको छो. विचारशील अने विवेकी मनुष्यने तो आQ करवू ज शोभे. पण आटली-आवी सज्जता क्याथी लाववी? पण तेवी सज्जता न होय तोय कांइ विवेक टो न ज चूकाय ! संशोधन अने पारम्परिक मान्यता ओ बे वच्चेनो तफावत पण समजवा जेवो तो छ ज. दा.त. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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