Book Title: Anusandhan 2006 06 SrNo 36
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 49
________________ 44 अनुसन्धान ३६ जेवा महानुभावोओ, केटलांक जैन पुरातन मन्दिरोना शिल्प शास्त्रीय परिचयो तैयार करी आपवा डॉ. ढांकीने कहेलुं. तदनुसार डॉ. ढांकीओ आठेक तीर्थोना परिचयो तैयार करी आप्या, जे Monographs कही शकाय तेवी पुस्तिकाओ (सचित्र) रूपे प्रकाशित पण थया छे. आ परिचयो परम्परागत आस्थाना पोषण-संवर्धन माटे नहि, पण ते ते तीर्थ/ मन्दिरना शिल्पशास्त्रीय तथा स्थापत्यकीय परिचयनी प्राप्ति खातर ज लखाया छे ते तो स्वयंस्पष्ट छे. जे काम अंग्रेजीमां थाय तो विश्वभरमां तेनुं भारे मूल्य अंकाय, ते काम, जैन संघना लाभार्थे, ज गुजरातीमां, डों ढांकीओ कर्यु. पण पेला रूढिजड लोकोने आ मूल्यवान काम पण ना गम्युं. जाणवा मळ्या मुजब तेमणे ओम कह्यु के ' आ पुस्तिकाओमां ते ते तीर्थ प्रत्ये भक्ति अने श्रद्धा जागे-वधे, तेवू कांई ज लखाण नथी, माटे आ पुस्तिकाओ पर प्रतिबन्ध होवो जोई.' फलतः आ ज संचालकोओ पेला लोकोनी आ मागणीनो पण स्वीकार तथा अमल को होवानुं जाणवा मळे छे. जैन समाजनी सांप्रत नेतागीरी अत्यारे कया मार्गे छे तेनुं आ बे घटनाओमां स्पष्ट प्रतिबिम्ब जोवा मळे छे, जे जोतां, विवेकभान-विहीन, धर्म तथा सम्प्रदायने शोभे तेवी उदारता तेमज विचारशीलता विहोणी, जडता अने कट्टरतानो भयजनक रोग जैन समाजने लागु पड्यो छे के शुं ? ओवी दहेशत हवे जागे छे. प्रत्येक धर्म अने तेनी परम्पराने जेम तेनो पोतानो इतिहास छे, तेम अने पोताना आगवा तिहासिक गोटाळा पण होय छे. आपणे त्यां, ऐतिहासिक तथ्यो अने साधनोनी नोंध अने मावजत करवानी प्रथा-पद्धति ज नथी. महदंशे बधुं कण्ठ अने कर्ण-परम्पराथी ज नभतुं आव्युं छे. बहु मोडेथी थोडाक लोकोने इतिहास-बोध जागृत थतां तेमणे, प्रबन्धादिरूपे, तेमने उपलब्ध अवी विगतोनी नोंध करी जरूर; पण तेमां समयना, नामोना तेमज विगतोना अटला बधा व्यत्ययो, व्युत्क्रमो थया के तेना कारणे अनन्त गोटाळा सर्जाया. ज्यारे विद्वान संशोधको, आधुनिक अर्थात् वैज्ञानिक पद्धतिथी संशोधन करवा बेठा, त्यारे आवा गोटाळा तेमनी शोधक दृष्टिथी पकडावा मांड्या. जैन इतिहासनी घटनाओनो, व्यक्तिओनो तथा तेना काळनो निर्णय करवो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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