Book Title: Anusandhan 2006 06 SrNo 36
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 42
________________ June-2006 __ पूर्ववर्ती कवियों द्वारा सजित द्विसन्धान, पञ्चसन्धान, चतुर्विंशति सन्धान, शतार्थी, सहस्रार्थी कृतियाँ तो प्राप्त होती हैं, जो कि उन कवियों के अप्रतिम वैदुष्य को प्रकट करती हैं, किन्तु समयसुन्दर ने 'एगस्स सुत्तस्स अणंतो अत्थो' को प्रमाणित करने के लिए 'राजानो ददते सौख्यम्' इस पंक्ति के प्रत्येक अक्षर के व्याकरण और अनेकार्थी कोषों के माध्यम से १-१ लाख अर्थ कर जो अष्टलक्षी । अर्थरत्नावली ग्रन्थ का निर्माण किया, वह तो वास्तव में बेजोड़ अमर कृति है। समस्त भारतीय साहित्य में ही नहीं अपितु विश्वसाहित्य में भी इस कोटि की अन्य कोई रचना प्राप्त नहीं हैं । ___'राजानो ददते सौख्यम्' पद के प्रत्येक अक्षर के लाखों अर्थ करने के लक्ष्य / प्रयोग को ध्यान में रखकर कवि ने अनेक ग्रन्थो एवं ग्रन्थकारों का उल्लेख करते हुए उदाहरण भी प्रस्तुत किये हैं। जिनमें से उल्लेखनीय कतिपय नाम इस प्रकार हैं : जैनागमों में - आवश्यक नियुक्ति, आवश्यक सूत्र बृहद्वृत्ति, स्थानांग सूत्र, जयसुन्दरसूरि कृत शतार्थी; पुराणों में - स्कन्दपुराण, महाभारत, व्याकरण ग्रन्थों में - सिद्धहेम शब्दानुशासन - बृहन्न्यास -- बृहद्वृत्ति - सारोद्धारकक्षपुट, पाणिनीय धातुपाठ, अव्ययवृत्ति व्याख्या, कालापक व्याकरण, सारस्वत व्याकरण, विष्णुवार्तिक; लक्षण ग्रन्थों में काव्यप्रकाश, रुद्रटालङ्कार टीका, वाग्भटालङ्कार, काव्यकल्पलता वृत्ति; काव्य ग्रन्थों में - नैषध काव्य, कुमार सम्भव काव्य, मेघदूत काव्य, खण्डप्रशस्ति, चम्पूकथा, नीतिशतक; कोष ग्रन्थों में - अमरकोष, अभिधान चिन्तामणि नाममाला, धनञ्जय नाममाला; एकाक्षरी एवं अनेकार्थी कोर्षों में - अनेकार्थ संग्रह, विश्वशम्भु नाममाला, सुधाकलशीय एकाक्षरी नाममाला, अनेकार्थ तिलक, कालिदासीय एकाक्षरी नाममाला, वररुचिकृत एकाक्षर निघण्टु; ज्योतिष में रत्नकोष आदि अनेक ग्रन्थों के उदाहरण दिये हैं। इस ग्रन्थ के रचना प्रसंग के सम्बन्ध में कवि ने स्वयं लिखा है : सं. १६४९ श्रावण सुदि १३ पातिशाह अकबर ने काश्मीर विजय करने के उद्देश्य से प्रयाण किया । पहले दिन का डेरा राजा रामदास के बगीचे में डाला । उसी दिन संध्या के समय जहांगीर, सामन्त, मण्डलीक राजागण तथा व्याकरण एवं तर्कशास्त्र के विद्वानों की उपस्थिति में सम्राट अकबर ने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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