Book Title: Anusandhan 2006 06 SrNo 36
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 18
________________ June-2006 13 किंचूणा अट्ठारस- वाससया एअपवरतित्थस्स । तो मिच्छघणसमीरं थुणेमि मुंडत्थले वीरं ॥९९।। महइमहालयअइसय-निम्मलअच्छेरभूअवरमुत्ती । अजिअजिणो तारणगिरि-कुमारनिवठाविओ जयउ ॥१००।। वायडनयरे मुणिसुव्वयस्स जीवंतसामिपडिममहं । वंदे तह वीरजिणं सतरसंवच्छरसया जस्स ॥१०१।। तह सिरिमालारासण-बंभाणाणंदसिद्धिपुरपमुहे । कासद्दह-अज्जाहर-पुरेसु चिरचेइए थुणिमो ॥१०२।। गुज्जर-मालव-कुंकुण-मरहट्ठ-सोरट्ठ-कच्छ-पंचाले। मरु-संभरि-महुराउरि-हत्थिणपुरि-सोरिअपुराई ॥१०३॥ तिहुअणगिरि-गोवगिरी-कासि-अवंती-मिवाडमाईसु। देसेसु जिणे थुणिमो दिट्ठ-अदिढे सुए असुए ॥१०४।। तह जंबुदीव-धायइ-पुक्खरदीवड्ड-विजयसतरिसए । जे केई गामागर-नग-नगराई अ तहिअं तु ॥१०५।। जाणि गिहचेइआणि अ जाणि अ जिणभवण तेसु जा पडिमा । गुरुआ जा पणधणुसयं लहुआ अंगुट्ठपव्वसमा ॥१०६।। सुर-नरकय मणि-कंचण-रीरी-रुप्पाइ जाव लिप्पमया । छउमत्थेहिं अम(मु)णिअसंखाउ नमामि ता सव्वा ॥१०७|| जे अइआ तित्थयरा जे उ भविस्सा अणागए काले । जे आवि वट्टमाणा ते सव्वे भावओ नमिमो ||१०८।। सुरकय-मणुअकयं वा भुवणतिगे सासयं च जं तित्थं । तं सयलमिह ठिओ वि हु मण-वयण-तणूहि पणमामि ॥१०९।। जत्थ जिणाणं जम्मो दिक्खा नाणं च निसिहिआ आसि । जइअं च समोसरणं ताओ भूमीउ वंदामि ॥११०॥ एवमसासय-सासय-पडिमा थुणिआ जिणिंद चंदाणं । सिरिमं महिंद-भुवणिंद-चंद-मुणिचंद थुअमहिआ ॥१११॥ इति श्रीतीर्थमालास्तवनम् ॥ सुश्राविका कुंअरि पठनार्थम् ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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