Book Title: Anusandhan 2006 06 SrNo 36
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 17
________________ 12 सिरिकन्नउज्जनरवइ - कारिअ लवणम्मि कीर दारुमए । पनरस वच्छरसइए (?) वीरजिणो जयउ सच्चउरे ||८५ ॥ अइबहुअच्छरिअनिही रहो अ पडहो अ I [सच्चउ] रे वीरजिणभवणे ॥८६॥ 1 नवनवइलक्ख धणवइ थुणि वीरं जक्खवसहीए ||८७|| तह चिरभवणे बिइए वंदे चंदप्पहं तओ तइए । पणयजणपूरिआसं कुमरविहारम्मि सिरिपासं ॥८८॥ बंभेवि - पल्लि - नाणय- देवाणंदेसु वीरनाहस्स । पयपउमजुअअलंकिअ थूभकु ( क ) ए चेइए वंदे ॥ ८९ ॥ मेवाडदेसगामे थुणेमि भत्तीइ नंदिसमसेसे (?) । सगडालमंतिकारिअ- जिणभवणे नायकुलतिलयं ॥ ९० ॥ सुक्कोसलमुणिसुचरिअ - पवित्तसिहरम्मि मुग्गिलगिरिम्मि । संपइ चित्तउडक्खे चिरतरबहुचेइ थुणिमो ॥९१॥ अब्बुअगिरिवरसिहरे जिणभवणं विमलठाविअं विमलं । विमल परिएहिं दसहिं गइंदरूढेहिं कयमहिमं ॥९२॥ अइरम्ममइविसालं महड्डिअं सुरकयं व पडिहाइ । वरजणभवणं बीअं पिवित्थ सिरिवत्थुपालकयं ॥ ९३ ॥ धोअकलधो अनिम्मिअ-पयंडधयदंडमंडिअं उभयं । वरसायकुंभगयदंभ - कुंभसोभंत भग्गं ॥९४॥ पढमजिणभवण जलणिहि - गब्भे चिंतामणि थुणे उसभं । अवरवरभवणसुरगिरि-तडि अमरतरुव्व नेमिजिणं ||१५|| नयणदुगं व सुतारं सिरिघरजुअलं व रयणपडिपुण्णं । रेहइ जिणभवणदुगं अब्बु अगिरिवरनरिंदस्स ॥९६॥ अब्बु अगिरिवरमूले मुंडथले नंदिरुक्ख अहभागे । छउमत्थकालि वीरो अचलसरीरो ठिओ पडिमं ॥ ९७ || तो पुन्नरायनामा कोइ महप्पा जिणस्स भत्तीए । कारइ पडिमं वरिसे सगतीसे वीरजम्माओ ||१८|| Jain Education International अनुसन्धान ३६ — For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70