Book Title: Anusandhan 1996 00 SrNo 07
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 4
________________ सम्पादकीय आपणो युग संशोधननो युग छे. घणुं बधुं साहित्य, क्या क्या दटायेखें पड्युं छे । तेने शोधी काढीने तेमांथी मळता ज्ञानने प्रगट करवानी, जगत समक्ष धरवानी पण एक जुदी ज मजा छे. तो नीर-क्षीर-विवेचननी दृष्टि केळवीने, परंपरास्वीकृत के मान्य गणातां तथ्योमा ज्यां जे कांई मिश्रण के उमेरण के परिवर्तन थयेलुं मालूम पडे, त्यां तेना खरा/यथार्थ तत्त्व-तथ्य सुधी पहोंचवानी दिशामां यथामति उद्यम करवो, ए पण एक अनेरो बौद्धिक विहार बनी रहे तेम 'अनुसन्धान' पत्रिका ए आवा बौद्धिक विहारनी अने ए विहारमा सहयात्री बनवाने शक्तिमान होय तेवा सहुनी पत्रिका छे । धीमी गतिए चालती तेनी यात्रा आजे सातमा मुकामे पहोंचे छे, ते पण एक आश्चर्यजनक संशोधनघटना छे । आ पत्रिकामां विविध क्षेत्रना अग्रणी गणाता थोडाघणा शोधको अने साहित्यिकोनो रस धीमे धीमे वधी रह्यो छे, तेनो आनंद ओछो नथी । आम छतां, अमे इच्छीए के आ पत्रिकामा संशोधनक्षेत्रे नीवडेल व्यक्तिओनी जेम ज संशोधनक्षेत्रना नवोदितो पण रस लेता थाय अने आ क्षेत्रने पुनः समृद्ध बनाववामां सहयोगी बने । संशोधनविद्याना जूना जोगी अने मान्य एवा विद्वानोनी पेढी हवे अस्त थती जाय छे । ताजेतरमां ज डॉ: अर्नेस्ट बेन्डर (अमेरिका), डॉ. चन्द्रभाल त्रिपाठी (भारतीय, जर्मनी) जेवा मूर्धन्य संशोधक विद्वानो स्वर्गवासी थया छ । आवा विद्वानोना अस्तथी संशोधनक्षेत्रे सर्जाता शून्यावकाशने पूरवो हशे तो नवा नवा संशोधकोने तैयार करवा ज पडशे । 'अनुसन्धान' जो आ माटेर्नु माध्यम बनी शकशे तो तेनो अमने घणो आनंद हशे । मुद्रणकार्यमा सहायरूप बनवा माटे अमे डॉ. नारायण कंसाराना आभारी छीए । -संपादको . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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