Book Title: Anekant 1992 Book 45 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 2
________________ पूज्य बड़े वर्णी जी का एक प्रवचन संसार भर की दशा बड़ी विचित्र है। कल का करोड़पति आज भीख मांगता फिरता है। संसारी जीव मोह के कारण अन्धा होकर निरन्तर ऐसे काम करता है जिससे उसका दुःख हो बढ़ता है। यह जोव अपने हाथों अपने कन्धे पर कुल्हाड़ी मार रहा है। यह जितने भी काम करता है प्रतिकूल ही करता है। संसार की जो दशा है, यदि चतुर्थकाल होता तो उसे देखकर हजारों आदमो दीक्षा ले लेते। पर यहाँ कुछ परवाह नहीं है। चिकना घड़ा है जिस पर पानी को बूंद ठहरती हो नहीं। भय्या! मोह को छोड़ो, रागादि भावों को छोड़ो, यही तुम्हारे शत्र है, इनसे बचो। वस्तुतत्त्व की यथाथता को समझो। श्रद्धा को दढ़ राखो। धनंजय सेठ के लड़के को सांप ने काट लिया, बेसुध हो गया। लोगों ने कहा--वैद्य आदि को बुलाओ, उन्होंने कहा वैद्यो से क्या होगा? दवाओं से होगा? मंत्र-तंत्रों से क्या होगा? एक जिनेन्द्र का शरण ही ग्रहण करना चाहिए। मन्दिर में लड़के को ले जाकर सेठ स्तुति करता है : - "विषापहारं मणिमौषधानि मन्त्रं समाद्दिश्य रसायनं च । भ्राम्यन्यहो न त्वमिति स्मरन्ति पर्यायनामानि तवैव तानि ।।" इस श्लोक के पढ़ते ही लडका अच्छा हो गया। लोग यह न समझने लगे कि:----धनंजय ने किसी वस्तु को आकांक्षा से स्तोत्र बनाया था, इसलिए वह स्तव के अन्त में कहते हैं :--- "इति स्तुति देव ! विधाय दैन्याद्वरं न याचे त्वमपेक्षकोऽसि । छाया तरुं संश्रयतः स्वतः स्यात्कश्छायया याचितयात्मलामः ।।" हे देव ! आपका स्तवन कर बदले में मैं कुछ चाहता नहीं हूँ और चाहूँ भी तो आप दे क्या सकते है ? क्योंकि आप उपेक्षक है-आपके मन में यह विकल्प ही नहीं कि यह मेरा भक्त है इसलिए इसे कुछ देना चाहिए। फिर भी यदि मेरा भाग्य होगा तो मेरी प्रार्थना और आपको इच्छा के बिना ही मझे प्राप्त हो जायगा। छायादार वृक्ष के नीचे पहुंचकर छाया स्वयं प्राप्त हो जाती है। आपके आश्रय में जो आयेगा उसका कल्याण अवश्य होगा। आपके आय से अभिप्राय शद्ध होता है अभिप्राय को शुद्धता से पापात्रव रुककर शमास्रव होने लगत है। वह शुमास्त्रव ही कल्याण क.. कारण है। देखो! छाया किसको है ? आप कहोगे वदा की, पर वक्ष तो अपने ठिकाने पर है। वक्ष के निमित्त से सूर्य की किरणें रुक गयीं, अतः पथिवी में वैसा परिणमन हो गया. इगो प्रकार कार गकूट मिलने पर आत्मा में रागादि भावरूप परिणमन हो जाता है। जिस प्रकार छायारूप हाना आत्मा का निजस्वभाव नहीं है। यही श्रद्धान होना तो शद्धात्मश्रद्धान है-- सम्यग्दर्शन है । आजीवन सदस्यता शुल्क : १०१.०० १० वाषिक मूल्य : ६) २०, इस अफ का मूल्य : १ रूपया ५० पैसे

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