Book Title: Anekant 1948 08
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jugalkishor Mukhtar

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Page 3
________________ ॐ अहम् तत्त्व:सघातक विश्व तत्त्व-प्रकाशक वार्षिक मूल्य ५) एक किरणका मूल्य ) 114 नीतिविरोधवसीलोकव्यवहारवर्तकः सम्यक् । परमागमस्य बीज भुवनैकगुरुर्जयत्यनेकान्तः॥ वर्ष ९ किरण ८ । वीरसेवामन्दिर (समन्तभद्राश्रम), सरसावा, जिला सहारनपुर श्रावणशुक्ल, वीरनिर्वाण-संवत २४७४, विक्रम संवत् २००५ अगस्त १९४८ समन्तभद्र-भारतीके कुछ नमूने युक्त्यनुशासन मिथोऽनपेक्षाः पुरुषार्थ-हेतु- . शीततारूपमें व्यवस्थित भी नहीं होती। परस्परनिरनांशा न चांशी पृथगस्ति तेभ्यः । पेक्ष सत्वादिक धर्म अथवा अवयव पुरुषार्थहेतुतारूप से उपलभ्यमान नहीं हैं, अतः पुरुषार्थहेतुतारूपसे परस्परेक्षाः पुरुषार्थ हेतु व्यवस्थित नहीं होते । यह युक्त्यनुशासन प्रत्यक्ष और दृष्टा नयास्तद्वदसि-क्रियायाम् ॥५०॥ आगमसे अविरुद्ध है।' ... (वस्तुको अनन्तधर्मविशिष्ट मानकर यदि यह जो अंश-धर्म परस्पर-सापेक्ष हैं वे पुरुषार्थके कहा जाय कि वे धम परस्पर-निरपेक्ष ही हैं और धर्मी हेतु हैं; क्योंकि उस रूपमें देखे जाते हैं जो जिस उनसे पृथक् ही है तो यह कथन ठीक नहीं है, क्योंकि) रूपमें देखे जाते हैं वे उसी रूपमें व्यवस्थित होते हैं, जो अंश-धर्म अथवा वस्तुके अवयव परस्पर-निरपेक्ष जैसे दहन (अग्नि) दहनताके रूपमें देखी जाती है हैं वे पुरुषार्थके हेतु नहीं हो सकते; क्योंकि उस रूपमें और इसलिये तद्रूपमें व्यवस्थित होती है; परस्परउपलभ्यमान नहीं हैं जो जिस रूपमें उपलभ्यमान सापेक्ष अंश स्वभावतः पुरुषार्थहेतुतारूपसे देखे जाते नहीं वह उस रूपमें व्यवस्थित भी नहीं होता, जैसे हैं और इसलिये पुरुषार्थहेतुरूपसे व्यवस्थित हैं। यह अग्नि शीतताके साथ उपलभ्यमान नहीं है तो वह • स्वभावकी उपलब्धि है।' Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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