Book Title: Anekant 1948 08
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jugalkishor Mukhtar

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Page 24
________________ ३०८ ] व्यक्तित्वका असर डाला है, उसको देखते हुए कोई हिन्दू स्त्री केली उनके मुहल्लोंसे निकलनेका साहस नहीं कर सकती । जनता तो व्यक्तियोंके वर्तमान व्यक्तित्व से अपनी धारणा बनाती हैं। उनके पूर्वज बादशाह थे या पैग़म्बर, इससे उसे क्या सरोकार ? अनेकान्त अलीगढ़के ताले और लुधियानेकी नक़ली सिल्क एजेण्टोंके धोखोंसे तङ्ग आकर, अलीगढ़ी और लुधियानवी लोगोंपर से ही जनताका विश्वास उठ गया । कई धर्मशालाओं में उनके ठहरनेपर भी आपत्ति होती देखी गई है। I कुछ मारवाड़ी फूहड़ और लीचड़ होते हैं। फर्स्ट क्लासमें सफ़र करें तो बाथरूम के बेसिनको मिट्टी से भरदें, डिब्बेमें पानीकी बाल्टी छलका छलका कर सिल बल- सिलबिल कर दें । मारवाड़ी औरतें घूँघट मारे रहेंगी. पर लेटफार्मपर बारीक धोती पहन कर नहाएँगी और धोती जम्पर बदलते हुए नङ्गी भी ज़रूर होंगी । कलकत्तेसे बीकानेर जाते-जाते बाबुओं और कुलियोंको घूंसके पचासों रुपये देते जाएँगे परन्तु दो रुपये देकर लगेज़ रसीद नहीं लेंगे। इन १००-५० फूहड़ोंके कारण अच्छे-अच्छे प्रतिष्ठित नैतिक मार वाड़ियोंको भी कुली और बाबूसे तन होना पड़ता है। चुङ्गीका जमादार गैर क़ानूनी वस्तुओं के आयात-निर्यात करनेवाले बदमाशोंको तो नजरन्दाज कर देगा, परन्तु सुसभ्य सुसंस्कृत मारवाड़ीका ट्रक विस्तर जरूर खुलवायेगा। क्योंकि उसकी धारणा बन गई है कि मारवाड़ीको तङ्ग करनेपर पैसा जरूर मिलता है । एक सम्प्रदाय और प्रान्त विशेषके नौकरीके इच्छुकों को कलकत्ते - बम्बई में यह कहकर टाल दिया जाता है - "नौकरी तो है परन्तु छोकरी नहीं" । अर्थात् जहाँ छोकरी नहीं. वहाँ तुम नौकरी करोगे नहीं और जहाँ छोकरी होगी तुम लेकर ज़रूर भागोगे | भारत में कई जातियाँ ऐसी हैं कि लोग राह चलते रात होनेपर जङ्गलोंमें पड़ रहना तो ठीक समझते हैं किन्तु उनके गाँवमेंसे गुजरना मंजूर नहीं करते 1 Jain Education International [ वर्ष दो-चारके खरे-खोटे आचरण और व्यक्तित्वके कारण समूचा देश, धर्म, समाज. वंश कलङ्कित हो जाता है । और यह कलङ्क ऐसे हैं कि नानीके पाप धेवतोंको भुगतने पड़ते हैं । एक बार एक सज्जन (सम्भवतया मुनि तिलकविजय) वर्मा गये। वहाँ दो वर्मियोंने उनका यथेष्ट सत्कार किया । प्रवासयोग्य उचित सहायता पहुँचाई । जब वे वर्मासे प्रस्थान करने लगे तो वर्मी मेजवानों का आभार मानते हुए, बार-बार अपने लिये कोई सेवाकार्य बतलाने आग्रह करनेपर वर्मियोंने सकुचाते हुए कहा - यदि वर्मा - प्रवासमें आपको वर्मियोंकी ओरसे कोई क्लेश पहुंचा हो या उनके स्वभावआचरण आदिके प्रति कोई आपने धारणा बना ली हो तो कृपाकर आप उसे समुद्र में डालते जाएँ । अपने देशवासियोंको इसका आभास तक भी न होने दें । क्यों ? यही तनिक-तनिक-सी धारणाएँ देशसमाज के लिये पहाड़ जैसी कलङ्क बनकर उभर आती हैं । बनियेके यहाँ लोग बिना, रसीद लिये रुपया दे आते हैं। जो देना -पावना उसकी बहो बतलाती है. ठीक मान लेते हैं; परन्तु बैङ्कके बड़ेसे बड़े अफसरको बिना रसीद एक पाई भी कोई नहीं देता न पाई-टू-पाई हिसाब मिलाये बिना कोई विश्वास ही करता है । इसका भी कारण यही है कि बनिया लेन-देनमें अधिक प्रामाणिक समझ लिया गया है । जितनाजितना वह पतनकी ओर जारहा है, उतना ही वह बदनाम भी होता जारहा है। शिकारपुर, भोगाँव, बलिया के निवासी मूर्ख और बिहारी बुद्ध क्यों कहलाते हैं ? क्या इन जगहोंमें सारे भारतके मूर्ख इकट्ठे कर दिये गये हैं, अथवा यहाँ मूर्ख और बुद्ध पैदा ही होते हैं ? नहीं, इन शहरोंके १०-५ गधोंने बाहर जाकर इस तरहकी हरकतें कीं कि लोगोंने उनसे उनके प्रान्त और शहर के सम्बन्धमें उपहासास्पद धारणाएँ बना लीं। वे गधे तो न जाने कबके मर गये होंगे, पर उनके गधेपनका प्रसाद वहाँ वालोंको बराबर मिल रहा है । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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