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अनेकान्त
[ वर्ष ६
के भण्डारमें मौजूद है। उन्होंने उस स्थानका नाम भक्ति प्रकट करते और पुण्य लाभ उठाते हैं। परिवर्तनकर वहाँकी कुण्डलाकार पर्वत-श्रेणियोंके बुन्देलखण्डको इस प्राकृतिक सौन्दर्यपूर्ण महान् आधारपर श्रीकुण्डलपुरजी रखा और तालाबका क्षेत्रके अपनी गोदमें होनेका अभिमान है। मन्दिरजीके नाम वर्द्धमानसागर । तबसे पुनः बाबाकी ख्याति प्रवेशद्वारपर जिनशासनरक्षकदेवता क्षेत्रपाल भी वृहबढ़ने लगी और धीरे-धीरे यह स्थान जनसाधारणकी ताकारमें उसीसमयसे स्थित हैं जबसे कि बड़े बाबा। जानकारीमें फिरसे आगया। श्रीकुण्डलपुरजीके आस- संवत् २०००से श्रीकुण्डलपुरजी क्षेत्रपर बड़े बाबा पासके ग्रामीणोंने भगवान महावीरकी इस विशाल- का एकाधिपत्य होगया है । इस क्षेत्रका प्रबन्ध जनकाय जैनप्रतिमाको बड़े बाबाके सुन्दर नामसे सम्बोधन तन्त्रीय कमेटीद्वारा होता है । क्षेत्रमें यात्रियोंकी करना शुरू कर दिया । इस जीर्णोद्धारकी तिथिकी सुविधा हेतु विशाल धर्मशालाएँ बन गई हैं। क्षेत्रका स्मृतिस्वरूप सम्राटकी आज्ञासे माह सुदी ११से १५ प्रबन्ध सुव्यवस्थित होनेपर भी अर्थाभावके कारण यहाँ तक प्रतिवर्ष यहाँ विशाल मेला भरने लगा जिसका जीर्णोद्धार कार्य इतना पड़ा हुआ है कि यदि लाखों प्रबन्ध राज्यकी तरफसे रहता था। आज भी मेलेमें रुपया भी खर्च किया जावे तो थोडा होगा फिर भी जैन और अजैन श्राकर बड़े बाबाके दर्शनकर अपनी जीर्णोद्धार बारहमासी चालू ही बना रहता है।
शिमलाका पर्यषणपर्व इस वर्ष शिमला · जैनसभाके मन्त्री लाला पyषणपर्वके प्रसङ्गसे शिमलाके कई अपरिचित जिनेश्वरप्रसादजी जैनके निमंत्रण और प्रेमपूर्ण आग्रह उत्साही और लंगनशील युवकबन्धुओंसे परिचय हुआ। पर मैं पर्युषणपर्वमें शिमला गया था। ६ सितम्बरको इनमें बा० अयोध्याप्रसादजी, ला० जिनेश्वरप्रसादजी. चलकर ७ सितम्बरको सुबह ८-२० पर शिमला पहुंचा निरञ्जनलालजी, पं० बालचन्दजी, डॉ. एस. सी० स्टेशनपर उतर कर रिम-झिम वर्षा, कुहर और महोच्च जैन आदिके नाम उल्लेखनीय हैं। इनकी शक्ति और पर्वतीय दृश्योंका अवलोकन करता हुआ जैनधर्मशाला उत्साहसे सभाको पूरा लाभ उठाना चाहिये। पहुंचा, जहाँ जैन-अजैन सभी यात्रियोंके ठहरनेकी बड़ी शिमला अखिल भारतवर्षीय और पञ्जाब गवर्नही अच्छी सुख-सुविधा तथा व्यवस्था है।
मेण्टकी प्रवृत्तियोंका महत्वपूर्ण स्थान है। दर-दरसे शिमलामें रात्रिको ७३ बजेसे १० बजे तक शास्त्र- सहस्रों व्यक्ति उसे देखने के लिये जाते हैं जो प्रायः प्रवचन होता है। दिनमें प्रायः सभी धर्मबन्धुओंके शिक्षित ही होते हैं, उनमें जैनधमके ज्ञानको अभिरुचि ऑफिसोंमें कामपर जानेके कारण उक्त समय ही धम- पैदा कर जैन-साहित्य और जैन-धर्मका अच्छा प्रचार चर्चा के लिये वहाँ उपयोगी होता है। पञ्चमीसे द्वादशी किया जा सकता है। अतः सभाका ध्यान निम्न तीन तक मेरेद्वारा शास्त्र-प्रवचनादि होता रहा । त्रयोदशीको कार्योंकी ओर आकर्षित कर रहा हूँअस्वस्थ हो जानेपर अन्तिम दोनों दिन शास्त्रप्रवचन- १. जैन-लायब्रेरीकी स्थापना, जिसमें प्रचारयोग्य ला० मिहरचन्दजी खजाञ्ची इम्पीरियलबैंकने किया। जैन-साहित्यके अलावा जैन-ग्रन्थोंका वृहत् संग्रह हो।
चतुर्दशीको दिनमें ३ बजे एक आम सभा की गई २. जैनकॉलोनी. जहाँ बाहरसे कामके लिये जिसके अध्यक्ष बा. सन्तलालजी देहली थे। जैनधर्म आये हुए जैन बन्धुओंको किरायेपर स्थान मिल सके। की विशेषताओंपर मेरा करीब एक घण्टा भाषण ३. जैन-पाठशालाकी स्थापना, इसके द्वारा हुआ। मेरे बाद सोनपतके एक धर्मबन्धु और उनकी स्थानीय बालक-बालिकाओंको जैनधर्म तथा अन्य धमपत्नीके भी भाषण हुए। अन्तमें ला० जिनेश्वर- विषयोंकी स्वच्छ वातावरणमें शिक्षा दी जा सकेगी। प्रसादजोने सभाकी वार्षिक रिपाट सुनाई। . . ४-१०-१६४८,
-कोठिया।
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