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अनेकान्त
कुण्डलपुर के बड़े बाबा श्रीमहावीरजी
तहखाना खुलवाने पर छठवीं शताब्दीसे आजतकके वे सब सिक्के प्राप्त हो सकते हैं जिनसे यह पता लगाना बिलकुल सरल हो जावेगा कि भारतवर्ष में कौन-कौन शासक यहाँ दर्शनार्थ आचुके हैं और उस समय इस स्थानकी प्रसिद्धि कहाँ-कहाँ तक फैली हुई थी ।
श्रीकुण्डलपुरजीसे करीब आधा भोल दूर फतेपुर नामक ग्राम है जहाँ रुक्मणीमठ नामक जैनमन्दिरके
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भग्नावशेष हैं। श्रीकुर डलपुरजी के जिन-जिन मन्दिरों में छठवीं सदीकी जितनी प्रतिमाएँ पाई जाती हैं वे सब हो रुक्मणीमठसे ही लाकर प्रतिष्ठित की गई हैं। चिह्नस्वरूप रुक्मणीमठमें एक पाषाणपर यक्ष-यक्षिणी खजूर के वृक्ष के नीचे खड़े हैं और उनके सिरपर पार्श्वनाथ भगवानकी प्रतिमा है। रुक्मणीमठके कुछ अवशेष सड़क के किनारे एक चबूतरेपर पीपल के वृक्षके
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